________________ बिना नहीं रहना चाहिये / प्रतिदिन की अन्य प्रवृत्तियों की अगर आवश्यकता है तो पूजा-प्रवृत्ति की भी अति आवश्यकता है / अतः प्रतिदिन पूजा की यह प्रवृत्ति तो अवश्य करनी चाहिए / खाली प्रभुदर्शनमात्र से नहीं निपटता है / जैसे, थाली परोसी हुयी हो, तो व्यक्ति भोजन का केवल दर्शन करके नहीं उठ जाता / फिर यहाँ केवल प्रभु के दर्शनमात्र से इति कर्तव्यता कैसे बने? वास्ते पूजा भी प्रतिदिन अवश्य करनी चाहिये / प्रभु की भक्ति में कुछ न कुछ हर रोज खर्च करना / दूध, घी, केशर, वर्क, धूपादि का समर्पण यथाशक्ति करना अत्यावश्यक है / प्रतिदिन प्रभु का स्तवन, गुणगान, जाप, स्मरण, ध्यान, प्रार्थनादि भी करना ही चाहिए / श्रावक को यह गौरव होना चाहिये कि - "मैं जैन हूँ / मैं अपने अनन्त उपकारी नाथ की भक्ति किए बिना भोजन नहीं करूं।" अर्हद्-भक्ति का लाभ अपरंपार है / __"दहेरे जावा मन करे चउत्थतणुं फल होए " अर्थात्-मन्दिर जाने की मात्र भावना की, तो एक उपवास का लाभ होता है / बाद मंदिर के प्रति आगे आगे बढ़ते फल बढता जाता है / प्रभु की अष्टकारी पूजा में फल और बढ़ जाता है / / ___ 'पांच कोडीना फूलडे पाम्या देश अढार' अर्थात् कुमारपालराजा ने पांच कौड़ी के पुष्पों से पूजा करने पर अठारह देश का राज्य प्राप्त किया / नागकेतु ने पुष्प-पूजा करते हुए केवलज्ञान प्राप्त किया। 1798