________________ इन पांच परमेष्ठियों में प्रत्येक परमेष्ठी इतने अधिक पवित्र और प्रभावशाली हैं कि उनके वारंवार स्मरण और वारंवार नमस्कार करने से विघ्न दूर होते है, श्रेय-प्रेयकारी महामंगल होता है, तथा चित्त को अनुपम प्रसन्नता, शांति स्वस्थता, तृप्ति और आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है / __पांच परमेष्ठी का स्मरण, नमस्कार, स्तुति, प्रशंसा, जाप, ध्यान और लय, ये सब कर्मो का क्षय करके मोक्ष पद प्रदान करने में समर्थ हैं / हां; इनके साथ साथ श्रावकजीवन में हों तो श्रावकपन के उचित और साधु होने के बाद साधुत्व के उचित आचार-अनुष्ठान का सम्यक् प्रकार से पालन होना चाहिए / साथ साथ मैत्री करुणा आदि 4 भाव-भावनाएँ हृदय में सिद्ध होनी चाहिए / (22) मंदिर के 10 त्रिक जिनभक्तिः भगवान अरिहन्त परमात्मा के हम पर अनन्त उपकार हैं / (i) उनके प्रभाव से ही ऐसा सुन्दर मनुष्य भव, उच्च कुल, आर्यपन आदि अनेक पुण्य संचय प्राप्त हुआ है / उसी प्रकार (ii) उनके द्वारा प्रदत्त मोक्षमार्ग से ही तैरना है, तथा (iii) ये प्रभु जाप, दर्शन, पूजा साधना आदि में उच्च आलंबन है / अतः उनकी भक्ति, दर्शन, पूजा आदि कृतज्ञतारूपेण भी किए R 1780