________________ उपयोगी शरीर का निर्वाह माधुकरी भिक्षा से करते हैं, उसमें भी उस निर्दोष आहार को ग्रहण करते हैं जो साधु के लिए न बनाया हुआ हो और न ही खरीदा गया हो इत्यादि / इसमें भी वे दाता से भिक्षा उसी अवस्था में लेते हैं, जबकि वह पानी, अग्नि, वनस्पति आदि के साक्षात् या परंपरया स्पर्श से भी सर्वथा रहित हे / इस प्रकार के कितने ही नियम पालते हैं / संसार के त्यागी होने के कारण साधुओं को घर-बार नहीं होते हैं / वे कंचन और कामिनी के सर्वथा त्यागी होते हैं / इन दोनों को स्पर्श भी नहीं करते हैं / ये इतने उच्च अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं / जैनसाधु वाहन में भी नहीं बैठते / ग्रामानुग्राम पैदल चलकर ही विहार करते हैं / जहाँ स्थिरता करते हैं वहां साधुचर्या की आवश्यक क्रियाओं और ज्ञान-ध्यान में दिन रात व्यस्त रहते हैं / दाढ़ी, मूंछ और सिर के बाल भी हजामत से नहीं उतरवाते है; बल्कि हाथ से उखाड़ देते हैं (लोच करते हैं) / लोगों को जीव-अजीव आदि 'तत्त्व' तथा अहिंसा, सत्य, नीति, सदाचार, दान, शील, तप, शुभ भावना, परोपकार आदि 'र्धम' का उपदेश देते हैं। साधु के 27 गुण होते हैं, 6 व्रत-पालन, 6 पृथ्वीकायादि षटकाय रक्षा, 5 इन्द्रियजय, 3 मनोवाक्कायसंयम, 7 क्षमा, लोभनिग्रह, भावविशुद्धि, क्रियाविशुद्धि, पडिलेहणा, आदि में उपयोग (जागृति), अनुष्ठान में लीनता, परिषह-उपसर्ग सहन / 21778