________________ क्षमानुभव-कारकत्व गुण, व चारित्रधर्म के पर, -आशा इन्द्रिय-विकार आदि के शमन से इन्द्रादि की अपेक्षा भी अधिक सुखानुभव-कारकत्व गुण का चिन्तन करना / अथवा (2) क्षमादि धर्म के कारण, स्वरूप और फल पर विचार करना / 8. बाधक दोष विपक्ष :- धर्माधिकारी जीव जिन-जिन अर्थराग, 'कामराग' आदि दोषों से पीड़ित होता हो उनके प्रतिपक्षी विचार करना / 'जैसे कि अर्थराग के प्रतिपक्ष में पैसे के लिए कैसे रागद्वेषादि संक्लेश तथा कैसे-कैसे हिंसादि पाप करने पड़ते हैं और धर्म के क्षणों की कितनी बरबादी होती है...' इत्यादि सोचना / 9. धर्माचार्य :- धर्म की प्राप्ति और वृद्धि में कारण भूत गुरु कितने निःस्वार्थ उपकारी हैं ! अहो ! कितने गुणियल गुरु ! 'यह उपकार कैसा दुष्प्रतिकार्य है ! (जिसका बदला न दे सकें) यह सोचे / 10. उद्यत विहार :- 'अनियत वास, माधुकरी भिक्षा, एकांतचर्या, अल्प उपधि, पंचाचार पालन, उग्र विहार इत्यादि कितने सुन्दर मुनि के आचार-विचार ! मैं कब ये प्राप्त करूंगा / ' इस पर सविस्तार चिंतन / ___पर्व कृत्यः- धर्म की विशेष आराधना के लिए विशिष्ट दिन नियत हैं / जैसे कि पर्वदिन दूज, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, 0 1700