________________ को देखते हुए यह सोचना कि (ii) संसार निर्गुण है / (iii) इसके स्वरूप विचित्र है, इन पर विचार करना / यह भी सोचना चाहिए कि (iv) मेरी भवस्थिति कैसे व कब परिपक्व होगी / 3. अधिकरण शमन :- अधिकरण अर्थात् (i) कलह, अथवा (ii) कृषि कर्म आदि, तथा (iii) पाप-साधनों का शमन मैं कब करूंगा? कब इनको रोकूगा-ऐसी भावना / 4. आयुष्य हानि :- आयु प्रतिक्षण क्षीण हो रही है, कच्चे घडे में पानी के समान यह देखते देखते ही नष्ट हो जायगी / मैं कब तक धर्म को भूलकर प्रमाद में रहूँगा? 5. अनुचित चेष्टा :- जीवहिंसा, असत्य, छल-कपट आदि पाप कार्य कितने खराब हैं / इनके इस लोक में और परलोक में कैसे कैसे कटु परिणाम आते है यह सोचना / 6. क्षण लाभ दीपना :- (i) मानव जीवन के अल्प क्षणो के भी शुभ-अशुभ विचार कैसे महान शुभ-अशुभ कर्मो का बंध करवाते हैं अथवा (ii) द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से मोक्ष साधना करने का यह कितना सुंदर सुनहरा क्षण-अवसर प्राप्त हुआ है अथवा (iii) अंधकार में दीपक के समान या समुद्र में द्वीप के समान जैनधर्म आराधने का यह कैसा सुन्दर मौका मिला है / 7. धर्म के गुण :- (1) श्रुत-धर्म (शास्त्र-स्वाध्याय) के साक्षात् 21698