________________ मध्याह्न में सावधानी रखते हुए कि जीवजन्तु न मरे, परिमित जल से स्नान करे, व मंदिर में आकर परमात्मा की अष्ट प्रकारी पूजा करनी / पूजा में अपनी शक्ति को न छिपाते हुए अपने घर के चंदन, दूध, केशर, पुष्प, वरक, अगरबत्ती, धूप, दीपक, अक्षत, फल नैवेद्य आदि द्रव्य-सामग्री का सदुपयोग करना / क्योंकि जिनेश्वर भगवान परमपात्र हैं, सर्वोत्तम पात्र है / उनकी भक्ति में समर्पित की गयी थोडी-सी भी लक्ष्मी अक्षय लक्ष्मी बन जाती है / पंचाशक शास्त्र में लिखा है- जैसे समुद्र में पानी की एक बूंद डाली जाए तो वह अक्षय बन जाती है, वैसे ही जिनेन्द्र के चरणों में अर्पित थोड़ी-सी भी लक्ष्मी अक्षय हो जाती है / दर्शन-पूजा की विधि पर आगे विचार किया जाएगा / भाव पूजाः चैत्यवंदन : द्रव्यपूजा के बाद भावपूजा के समय अत्यधिक उल्लास पूर्वक गद्गद स्वर से हृदय में आनन्दाश्रु हों, इस प्रकार चैत्यवंदन की क्रिया करनी / अन्त में 'जयवीयराय' सूत्र से भवनिर्वेद, मार्गानुसारिता (तत्त्वानुसारिता) आदि की, विशेष लक्ष्यकर, नम्रतापूर्वक याचना करनी। 'हमें ये चाहिए' ऐसा मनमें प्रतीत हो, इस प्रकार याचना होनी चाहिए / सूत्रों का उच्चारण, केवल तोता-रटन जैसा नहीं किन्तु मन इसके अर्थ के अनुरूप भाव लाकर करना चाहिए / तदनन्तर घर आकर अभक्ष्य-त्याग, ऊनोदरी, द्रव्य- संकोच और 21668