________________ हैं | पोरसी से 1000 वर्ष की, साढ-पोरिसी से 10,000 वर्ष की, पुरिमड्ढ से लाख वर्ष की, एकासन से 10 लाख, रुखी नीवी से 1 करोड, एकासन दत्ती से 10 करोड, एकलठाण से 100 करोड, आयंबिल से 1000 करोड, उपवास से 10,000 करोड, बेले से 1 लाख करोड, तेले से 10 लाख करोड...वर्ष तक की नरक-वेदना के पाप नष्ट होते हैं / पच्चक्खाण लेने के बाद जिनमंदिर में जाकर परमात्मा का दर्शन, प्रणाम, पूजा और स्तुति करनी चाहिए / 'जिनेन्द्र प्रभु के दर्शनपूजन आदि धर्म करने से हमें उच्च आर्य मनुष्यभव, ऐसे प्रभु, व जिनशासन आदिके, पुण्य का लाभ मिला, -यह प्रभु का उपकार है' इस बात को याद करके गद्गद होना चाहिए / ' प्रभु ने चिंतामणि से भी अधिक मूल्यवान दर्शनादि दिया इसका हमें अतीव हर्ष हो, प्रभु के अनुपम उपकार पर कृतज्ञता का भाव हो, रोमांच खडे हो, आँखे अश्रुओं से आर्द्र हो, ऐसे दर्शन-पूजन-स्तवन करने चाहिए / बाद में धूप, दीप, वासक्षेप आदि पूजा तथा चैत्यवंदन-स्तवना करके पच्चक्खाण का उच्चारण करना / तत्पश्चात् उपाश्रय में गुरुजी के पास आकर वंदन करना, सुख-शाता पूछनी, और उनसे पच्चक्खाण लेना, उन्हें भात-पानी-वस्त्र-पात्र-पुस्तक-औषध का लाभ देने की विनंती करनी / गुरु-वंदनः- सुगुरु पंच महाव्रतधारी, जिनाज्ञा-प्रतिबद्ध मुनिमहाराज के पास जाकर, जब तक वहां रहें तब तक के लिए, 'सावज्जं जोगं 21648