________________ (20) श्रावक की दिनचर्या सम्यग् आचारों से विचारों का संस्करण-शुद्धिकरण होता है / सद् आचार से सद् विचार बनते हैं | बाह्य क्रिया के अनुसार अन्तर के वैसे वैसे भावो और हृदय की वैसी वैसी परिणति निर्माण होती है / अच्छी क्रिया से अच्छी परिणति बनती है व बुरी क्रिया से बुरी। श्रावक-जीवन के सुन्दर विचार, सुन्दर भाव, और सुन्दर परिणति का सर्जन और पुष्टि के लिए सुन्दर आचार और सुन्दर क्रियाएँ आवश्यक हैं / इस लक्ष्य की सिद्धि के लिए 'श्राद्धविधि' आदि जैन शास्त्रों में श्रावक जीवन के (i) दिनकृत्यो, (ii) पर्वकृत्यो, (iii) चातुर्मासिक कर्तव्यो (iv) पर्युषण कर्तव्यो, (v) वार्षिक कर्तव्यो, और (vi) जीवन कृत्यो के विचार प्रतिपादित किए गए हैं / सर्वप्रथम दिनकृत्यो का विचार करेंगे / यह इस प्रकार है, प्राभातिक कर्तव्य : नवकार-स्मरण : 'श्रावक तुं ऊठे प्रभात, चार घड़ी रहे पिछली रात'-अर्थात् :आत्मार्थी श्रावक को सूर्योदय से 4 घडी पहले जाग जाना चाहिए। सुबह जागते ही 'नमो अरिंहताणं' याद करते हुए 'अनंत अरिहंत भगवंत को मैं नमस्कार करता हुँ' ऐसे नजर समक्ष लाते हुए मस्तक नमा कर करबद्ध प्रणाम करना चाहिए / बाद में विनय के लिए तुरंत बिछाने से बाहर निकल कर (शय्या त्याग कर) पूर्व या उत्तर 1618