________________ ज्ञान, (3) अनन्त दर्शन, तथा (4) अनन्त वीर्य रूप अनन्त चतुष्टय की नित्य स्थिति होती है वैसे तो आठ कर्मो के नाश से शाश्वतकाल के लिए मूल आठ गुण प्रगट होते हैं, जिनके कारण अब उसको कभी संसार नहीं / जीव मोक्ष में ऋजुगति से ही व एक समय में ही जाता है, और उपर लोक के मस्तक पर शाश्वत स्थिर रही हुई स्फटिक रत्न की 45 लाख योजन चौडी वर्तुलाकार सिद्धशिला पर विराजमान होता है / वास्ते यहाँ 45 लाख योजनमान मनुष्य क्षेत्र में से ही मोक्ष जा सकता है / इन में कृत्रिम नपुंसक की अपेक्षा स्त्री-सिद्ध संख्यातगुण, इन से पुरुष-सिद्ध संख्यातगुण होते है / संहृत-सिद्ध की अपेक्षा जन्म क्षेत्रे सिद्ध असंख्यगुण होते है, ऐसे उर्ध्व० से अधोवाले असंख्यगुण सिद्ध / संहृत सिद्ध की अपेक्षा असंख्यगुण जन्म क्षेत्रे सिद्ध उर्ध्वलोके सिद्ध से असं० अघोलोके / अघोलोके सिद्ध से तिर्छालोके; समुद्रे सिद्ध से द्वीपे असं० गुण / उत्सर्पिणीअवसर्पिणी महाविदेहे असं० उत्स. की अपेक्षा अवस० में सिद्ध विशेषाधिक / 9 सत्पदादि प्ररूपणा : मोक्ष तत्त्व तथा अन्य तत्वों का भी विस्तारपूर्वक विचार करना हो, तो इस विषय में सत्पदादि नौ पदों से 62 मार्गणा-द्वारों में विचार (व्याख्यान) हो सकता है / 'सत्पदादि' अर्थात् (1) क्या वस्तु सत् है? (2) वस्तु का द्रव्य 21520