________________ ज्ञान-चारित्र-तपस्वरुप उपायों की साधना की जाए तो नये कर्मबन्ध रुक जाने से व पुराणे कर्मों का निर्मूल ध्वंस हो जाने से संसार का अन्त व मोक्ष की सिद्धि होने का सुसंभवित है / खान में सुवर्ण का भले जन्म से मिट्टी के साथ एक- मेक संबंध है, किन्तु संशोधनविधि से इस को बिलकुल मिट्टीवियुक्त एवं शुद्ध सो टच का सुवर्ण स्वरूप दिया जा सकता है / ऐसे ही कर्मसंयुक्त आत्मा को भी आत्म-शोधक विधि से सर्वथा कर्मवियुक्त आत्मा को भी आत्म-सुखादिमय आत्मस्वरूप दिया जा सके यह युक्तियुक्त है / ___और आत्मा का कर्मवियुक्त शुद्ध स्वरूप प्रगट करने लायक भी है, क्यों कि कर्मसंयोग से ही आत्मा को जन्म व शरीराधीन अनेक विटंबनाएँ हैं / कई पराधीनता, अपमान अपकीर्ति है, कई रोग, अकस्मात्, आपत्तियां आती हैं / वार्धक्य, अशक्ति, कष्ट.... आदि कई दुःख आते हैं / मोक्ष हो जाने से अब वहां कोई कर्म ही नहीं, एवं शरीर ही नहीं,तो किसी प्रकारका दुःख रहता नहीं / एवं समस्त कर्मावरण हट जाने से आत्मा को अनंत ज्ञान-दर्शन-सुख में शाश्वत काल के लिए रमणता मिलती हैं / ___ प्र०-मोक्ष में 'दुःख नहि' इससे मोक्ष का कैसे आकर्षण हो? वैसे तो स्वर्ग में भी दुःख नहीं, फिर भी विरागी को स्वर्ग का कोई आकर्षण होता नहीं / अगर कहें मोक्ष के अनंत सुख का आकर्षण Sa 14880