________________ के कारण कर्मबंधन से बद्ध हो कर इन कर्मो के फलभोग में, संसार की नरक-तिर्यंच...आदि चारों गतियों की 84 लाख योनिओं में, नये नये शरीर धारण कर भटक रहा है, जन्म-मरण, जन्म-मरण कर रहा है; और उनमें नरकादि गतियों में छेदन-भेदन-जलन, कूटन-पीटनताडन, क्षुधा-तृषा-रोग....आदि कई भयंकर त्रास-वेदना-विटंबणाएँ भोग रहा है / वह भी मात्र १००-१०००-लाख बार नहीं किन्तु अनंत अनंत बार भोगता रहा है / इनका अंत, जीव जब संसार से मुक्त हो मोक्ष पाए, तब आता है / इसके लिए धर्म-पुरूषार्थ करना पडे / जगत में चार प्रकार का पुरुषार्थ है, धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष इनमें अर्थ-काम संसार के हेतु है, व धर्म मोक्ष का हेतु है / मोक्ष के लिए धर्म-पुरुषार्थ करना चाहिए / तभी संसार का अन्त आ सकता है / प्र०-संसार तो अनादि अनंतकाल से चला आ रहा है, तो क्या इसका अन्त आ सकता है? उ०-हां, जिन कारणों से संसार है उनके प्रतिपक्ष उपायों से संसार का अन्त आ सकता है / जैसे कि, अच्छे अच्छे रसदार कुपथ्यों का खानपान बहुत वार व प्रमाणातीत करते रहने से भयंकर व्याधियां आई हो, तब ऐसे खानपान के प्रतिपक्ष कई उपवास करने से व्याधियों का अन्त आ सकता है / इस प्रकार यहां भी संसार कर्म-संयोग से है, और कर्म-संयोग मिथ्यात्व-अविरति- कषाय-योग-प्रमाद के कारणों से होता रहता है / अब इन कारणों के प्रतिपक्षी सम्यग्दर्शन 21478