________________ (1) 'सेवा-शुश्रूषा' विनय के 10 प्रकार हैं, (1) सत्कार (नमस्कार, शुभागमनपृच्छा, आवकार (जैसे, आइए, पधारिए') (2) अभ्युत्थान-(सत्कारार्थ अपने आसन से उठना) (3) सन्मान-(पूज्य के हाथ में रही वस्तु स्वयं उठां लेना / पूज्यको (4) आसान-परिग्रह (उनके आसान आदिकी संभाल लेनी) (5) आसनदान, (6) वंदना, (7) पास में अंजलिबद्ध (हाथजोंड) खडे रहना, (8) उनके आने पर सामने लेने जाना, (9) बैठे है तो उनकी उपासना करनी, तथा (10) जाते समय विदा देने हेतु जाना / (2) अनाशातना विनय के 45 प्रकार है (1) तीर्थं कर, (2) धर्म, (3) आचार्य, (4) उपाध्याय, (5) स्थविर (वयस्थविर, श्रुतस्थविर, पर्यायस्थविर), (6) कुल (एक आचार्यकी संतति), (7) गण (अनेक कुल-समूह), (8) संघ (अनेकगण-समूह), (9) सांभोगिक (वे साधु जिनके साथ गोचरी आदि व्यवहार प्रवृत्त है / ), (10) क्रिया (परलोक है, आत्मा है.... आदि आस्तिकता की प्ररूपणा), तथा (11 से 15) मतिज्ञानादि पांच ज्ञान, -इन 15 की। (अ) आशातना का त्याग, (ब) भक्ति-बहुमान, तथा (क) सद्भूत गुणप्रशंसा द्वारा यशोवृद्धि / 15 x 3 = 45 अनाशातना-विनय / (3) चारित्रविनय के 15 प्रकार है,- पांच प्रकार के चारित्र पर 0 140