________________ (i) श्रद्धा रखना, (ii) उसका पालन करना, व (i) उसकी यथास्थित प्ररूपणा करना, 5 x 3 = 15 / (4-5-6) त्रिविध योगविनय के 2-2 प्रकार है (i) आचार्यादि के प्रति अशुभ वाणी-विचार-वर्ताव (व्यवहार) का त्याग, तथा (ii) शुभवाणी आदि का प्रवर्तन (प्रवृत्ति) / (7) लोकोपचार विनय के 7 प्रकार है,- गुरु आदि के प्रति लोकप्रसिद्ध विनय के सात प्रकार है-(i) उनके निकट रहना, (ii) उनकी इच्छा का अनुसरण करना, (ii) उनके उपकार की कृतज्ञता प्रदर्शित करनी, व उपकार का अच्छा ऋण चुकाने का प्रयास करना, (iv) तुच्छ स्वार्थ के निमित्त नहीं किन्तु ज्ञानादिगुण के निमित्त उनकी आहारादि से भक्ति करनी, (v) उनके दुःख, रोग, पीडा, दिक्कत आदि मिटाने का ध्यान रखना, और इनके निवारणार्थ प्रयत्नशील रहना / (vi) उनकी सेवा-भक्ति में उचित देश- काल का ख्याल रखना / (vii) सब बातो में उनको अनुकूल रहना / (3) वैयावच्च-तप आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, बीमार, शैक्षक-(नूतन मुनि) साधर्मिक, कुल, गण, संघ,-इन दस की सेवा-शुश्रूषा करनी यह दस प्रकार की वैयावच्च है / (4) स्वाध्याय-तप 1410