________________ जिनभक्ति, व्रत, नियम आदि क्यों नहीं कर सकता? कहना होगा कि उसे मनुष्य-भव का पुण्य उदय में नहीं है / धर्म-सामग्री उसके पास नहीं है / अतः कहिए, कर्म को तोडनेवाली धर्माराधना के लिए आवश्यक है सामग्री, और वह सामग्री प्रदान करनेवाले हैं शुभ कर्म / अतःइन शुभ कर्मो की भी आवश्यकता है / देखा गया है कि यहाँ जब आयुष्यका शुभ कर्म समाप्त हो जाता है, तो धर्म-साधना व तज्जनित शुभकर्मोपार्जन रूक जाते है / प्रश्नः- देखने में तो यह बात भी आती है कि आरोग्य, घनिकता, यश आदि पुण्य के उदय पर ही मनुष्य अधिक पाप भी करता है। उत्तर:- यहां पुण्य-पाप की चतुर्भंगी समझने योग्य है : (1) पुण्यानुबन्धी पुण्य - उदय में पुण्य हो और वह ऐसे पुण्यानुबंधन (शुभसंस्कार) वाला हो की जिससे इस पुण्य के उदय के साथ साथ सद्बुद्धि और धर्म-साधना मिले कि जिन के होने पर नये पुण्य का बन्ध होता है / ऐसा वर्तमान पुण्योदय पुण्यानुबन्धी पुण्योदय है / (2) पापानुबंधी पुण्य - पुण्य उदय में हो अथवा उदय में लाना हो, किन्तु साथ साथ विषय-कषाय, अर्थ-काम, हिंसा-झूठ आदि पापका सेवन कर रहा हो / जिसके कारण जीव नये पाप-कर्म का ढेर बांधता है / अतः वह पुण्य (पुण्योदय) पापानुबन्धी कहा जाता है। SN 134560