________________ मिथ्यात्व आदि के अशुभ भावों में हो तब अशुभ कर्म बांधता है / धार्मिक क्रिया और आचारों का यह प्रभाव कि वे जीव को शुभभाव में रखते हैं / अतः वह शुभकर्म को बांधनेवाला होता है / हाँ, यदि वहाँ भी कोई धन की लालसा करता है, या किसी पर क्रोधादि करता है, तो इसे अशुभ भाव हो जाने के कारण वह अशुभ कर्म बांधता है / फिर भी प्रायः ऐसा होता है कि, आरंभ-समारंभ, विषय, परिग्रह आदि सांसारिक क्रियाएँ साधारणतः अशुभ भाव की प्रेरक होती हैं; | अतः ये अशुभ क्रियाएँ हैं / जब कि धार्मिक क्रियाएँ शुभ भाव की प्रेरक हैं, अतः ये शुभ कर्म की कमाई कराती हैं | शुभ भावों की उत्पत्ति और वृद्धि के लिए शुभ क्रियाएँ ही उपयोगी कही जाए, अशुभ नहीं / अतः जीवन को धार्मिक आचारों से भराभरा रखना चाहिए / प्रश्नः शुभ कर्म का भी लोभ किस लिए किया जाए? दर असल यह कर्म भी एक प्रकार की बेडी ही है, चाहे सोने की हो / बेडियों को तो तोडना ही है / बेडी तूटने पर ही तो मोक्ष होता है न? फिर शुभ कर्म (पुण्य) का 'लोभ' क्यों? उत्तरः शुभकर्म का लोभ इसलिए कि शुभकर्म होने पर ही उत्तम मनुष्यभव, आरोग्य, आर्यदेश, आर्यकुल तथा देव-गुरू-धर्म की सामग्री प्राप्त होती है / इनकी प्राप्ति होने पर ही उच्च धर्माराधना हो सकती है। कुत्ता बेगार है, निवृत्त है, किन्तु वह ज्ञानोपार्जन, धर्मश्रवण, 1338