________________ 39 पिंड प्रकृति + 8 प्रत्येक प्रकृति + त्रस दशक + स्थावर दशक, इस प्रकार कुल 67 / (पिंडप्रकृति अर्थात् उपभेदों के समूहवाली प्रकृति) प्रत्येक प्रकृति = व्यक्तिगत, उपभेद रहित 1-1 प्रकृति / इन 67 प्रकृति का वर्णन इस प्रकार है, 14 पिंड प्रकृति (कुल 39 प्रकृति) (1) 4 गतिनामकर्म :- जिन कर्मो से नरकादि पर्याय प्राप्त होते है उन्हें गतिनामकर्म कहते हैं / गति चार है, -नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति, और देवगति / (2) 5 जातिनामकर्मः- एकेन्द्रिय-जाति से लेकर पंचेन्द्रिय-जाति तक की किसी भी जाति को दिलवाने वाला कर्म 'जाति-नामकर्म' कहलाता है / यह न्युनाधिक चैतन्य का व्यवस्थापक है / ___ (3) 5 शरीरनामकर्मः- 'शीर्यते इति शरीरम्' - जो शीर्ण-विशीर्ण हो, टूटे-फूटे, वह 'शरीर' कहलाता है / उसे देनेवाला कर्म शरीरनामकर्म है / शरीर पांच हैं :(i) औदारिकः- उदार अर्थात् स्थूल पुद्गलों से निर्मित, जैसे कि मनुष्यों व तिर्यंचो का शरीर / 0 1208