________________ (ii) वैक्रियः- विविध क्रिया (अणु, महान, एक, अनेकादि) करने में समर्थ शरीर / जैसे कि देवो और नारकों का शरीर / (iii) आहारकः- श्री तीर्थंकरदेव की ऋद्धि देखने के लिए या संशय-समाधान पूछने के लिए चौदहपूर्वी मुनि जो आहारक पुद्गलों से एक हाथ का शरीर बनाते है उसे आहारक शरीर कहते हैं / उसे यहाँ से विचरते तीर्थंकर भगवान के पास भेजते हैं / ____(iv) तैजसः- आहार का पचन आदि करनेवाला तैजस पुद्गलों का समूह / (v) कार्मणः- जीव के साथ बद्ध कर्मो का समूह / ऐसे शरीर का निर्माण करनेवाले कर्म 'शरीर नामकर्म' कहलाते (4) 3 अंगोपांग नामकर्म:- जिस के उदय से औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीर को मस्तक, छाती, पेट, पीठ, दो हाथ, दो पैरये आठ 'अंग' व ऊँगलियां आदि 'उपांग', और पर्व-रेखादि 'अंगोपांग' प्राप्त हो, वह 'अंगोपांग' नामकर्म है / एकेन्द्रिय जीव को अंगोपांग नामकर्म का उदय नहीं होता, फलतः उसके शरीर में अंगोपांग नहीं होते हैं / क्या शाखा, पत्रादि ये अंगोपांग नहीं है? नहीं / वे तो पृथक्-पृथक् जीव के शरीर होने के कारण किसी एक जीव के शरीर के अवयव नहीं है / यहाँ 'शरीर नामकर्म' के अन्तर्गत 'बन्धन नामकर्म' और 'संघातन नामकर्म' होते हैं / 0 1218