________________ में इसके तीन पुंज हो जाने से उदय के समय यह मिथ्यात्व-मोहनीय, मिश्र-मोहनीय, व सम्यक्त्व-मोहनीय / ऐसे तीन प्रकार के हो जाता है / सम्यक्त्व मोहनीय में, सम्यक्त्व के कारण तत्त्वश्रद्धा तो ठीक होती है, किन्तु अतिचार लगते हैं / मिश्र-मोहनीय में अतत्त्व पर रुचिअरुचि नहीं होती है; इसी प्रकार सर्वज्ञ-कथित तत्त्व के प्रति भी श्रद्धा भी नहीं, अश्रद्धा भी नहीं होती यह मिश्रमोहनीय का प्रभाव है / 2. चारित्र मोहनीय की 25 प्रकृतिः- 16 कषाय मोहनीय+९ नोकषाय मोहनीय / कष=संसार का आय-लाभ जिससे हो, अर्थात् जो संसार को बढाये वह कषाय / वे हैं-क्रोध, मान, माया, लोभ / राग-द्वेष इन में समाविष्ट हैं / क्रोध और मान द्वेष हैं, माया और लोभ राग हैं / क्रोधादि हरेक के अनन्तानुबंधी आदि चार-चार प्रकार हैं / इस प्रकार 16 कषाय हो जाते हैं / ___ नोकषायः- कषाय द्वारा प्रेरित अथवा कषाय के प्रेरक हास्यादि ९-हास्य, शोक, रति (इष्ट में प्रसन्नता), अरति (अनिष्ट में उद्वेग, नाराजगी), भय (अपने संकल्प से डर), जुगुप्सा (घृणा), पुरुषवेद (जुकाम होने पर खट्टा खाने की इच्छा के समान जिसके उदय से स्त्री-भोग की अभिलाषा हो), स्त्रीवेद (पुरुष भोग की अभिलाषा हों), नपुंसकवेद (दोनों की अभिलाषा हो) / (4) अन्तराय कर्म के पांच प्रकार है :- 1. दानान्तराय कर्म, 2. लाभान्तराय कर्म, 3. भोगान्तराय कर्म, 4. उपभोगान्तराय कर्म 0 1180