________________ शेष इन्द्रियों तथा मन से दर्शन नहीं होता (iii) अवधि-दर्शनावरण / (iv) केवल-दर्शनावरण / इन के अतिरिक्त पांच निद्रा कर्म हैं / (i) नींद्राः- अल्पनिद्रा, जिस से जागना सुख पूर्वक होता है। (ii) नींद्रा-नींद्राः- जिस में जीव बडी कठिनाई से जागता है / (iii) प्रचलाः- बैठे बैठे या खडे खडे निंद का आना ! (iv) प्रचलाप्रचलाः- चलते हुए निंद का आना / (v) स्त्यानद्धिः- जिस में जीव जाग्रत अवस्था के समान निंद में दिन के समय सोचा हुआ कठिन भी काम कर के आ जाता है | पहले चार दर्शनावरण कर्म दर्शनशक्ति को जागने नहीं देते हैं | पांच नींद्राकर्म जागृत दर्शन को समूल नष्ट कर देते हैं, इसलिए इन पांच को भी दर्शनावरण में गिना गया है / (3) मोहनीयकर्म, इसके 26 प्रकार है, - इसके मुख्य दो विभाग है, - (1) दर्शन मोहनीय, (2) चारित्र मोहनीय (इसके 25 प्रकार 1. दर्शन मोहनीय कर्म मिथ्यात्व मोहनीय है / इस के उदय से अतत्त्व पर रुचि तथा सर्वज्ञकथित तत्त्व पर अरुचि होती है / यह कर्म बन्ध के समय तो एक ही प्रकार का होता है, किन्तु बाद 2117