________________ अशुभ कर्मबंध होता है / अशुभ योग में भी यदि भाव शुभ हो तो शुभ कर्मबन्ध होता है, जैसे कि रसोई करने में श्राविका के दिलमें'अरेरे ! कितने असंख्य अग्निकाय, अप्काय, वनस्पतिकाय जीवों का नाश ! कब मैं इससे मुक्त होऊँ?' ऐसा शुभभाव आए तो शुभ कर्मबंध का लाभ होता है / इस प्रकार जिनपूजा महा शुभयोग है, लेकिन इसमें किसी पर गुस्से के भावमें आ जाए तो अशुभ कर्मबन्ध होता ___ प्र०- तब तो ऐसा कहो न, कि 'दिल के भाव के अनुसार कर्मबन्ध होता है, वास्ते बाह्य धर्मक्रिया का कोई उपयोग नहीं-कोई जरूर नहीं?' उ०- ऐसा नहीं है, क्योंकि आंतरिक भाव पर बाह्य क्रिया का बहुत असर पड़ता है / वास्ते धर्मक्रिया बहुत जरूरी है / अनुभव है कि बार बार प्रभु-दर्शन से शुभ भाव एवं बार बार स्त्री दर्शन से अशुभ भाव होता है / (5) प्रमाद : आत्मा की स्वरूप-रमणता को चुकानेवाले 'प्रमाद' कहे जाते है / इनमें पांच बड़े प्रमाद है, -मद, विषय, कषाय, नींद्रा व विकथा / धन आदि विषयों के बडा लोभी यदि बडी बडी फेक्टरिया चलाता है, और आज की दुनिया में जो महान उद्योगपति कहलाता है, वह बडे विषय व राग- लोभ के कषाय का सेवन करता है, अतः जैन 8956