________________ 191 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता इच्छामि पडिक्कमिउं गोअरचरिआए एवमाईयं / उच्चारिऊण सुत्तं कयउस्सग्गो विचिंतेइ // 9 // अहो जिणेहिं असावज्जा, वित्ती साहूण देसिया / मोक्खसाहणहेउस्स, साहुदेहस्स धारणा // 10 // पारेइ नमुक्कारेण तयणु चउवीसजिणथवं भणइ / पच्चक्खाणं नियमं पुव्वकयं इत्थ पारेड् // 11 // " अमुं पूर्वोक्तविधि निष्पाद्य पुनः किं कुरुते तदाह - कयसज्झाओ य खणं वीसमिय निमंतिउं गिलाणाई / पोत्तिं पेहिय भणिउं नवकारं भुंजइ पयासे // 104 // कृतस्वाध्यायो मुनिर्जघन्यतो गाथाषोडशकविहितस्वाध्यायः क्षणं क्षणमात्रं विश्रम्य ग्लानादीन् निमन्त्रयित्वा-आकार्य पोतिका प्रतिलिख्य नमस्कारं च भणित्वा-नमस्कारमन्त्रमुच्चार्य प्रकाशेनान्धकारे भोजनं करोति, साधुरिति शेषः, यदाहुः - "मुंचइ भत्तं पाणं सम्मं जिणणाहवंदणं कुणइ / सोलससिलोगमाणं जहन्नयं कुणइ सज्झायं // 1 // खणमित्तं वीसामं करेइ चिंते अणुग्गहं जइ मे / कुव्वंति गिलाणाई तत्तो हुज्जामि कयकिच्चो // 2 // जह अब्भंगणलेवो सगडक्खवणाण जुत्तीओ होइ / इय संजमभरवहणट्ठयाए साहूणमाहारो // 3 // जे चेव अन्धयारे दोसा ते चेव संकडमुहंमि / परसाडीबहुलेवाडणं च तम्हा पगासमुहे // 4 // // 104 // अथ पिण्डदोषाधिकारादिह द्विचत्वारिंशद्दोषा: निरूपिताः, शेषाः संयोजनादयो ग्रासैषणादोषाः पञ्च, यतेर्विधिना गृहीतस्याहारस्य विधिनैव