________________ 189 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता महात्मनां नित्यमेव-सदैवोपवासः-अभक्तार्थः, कथम्भूतानां साधूनां ?देशोनपूर्वकोटिं श्रामण्यं-चारित्रं साधुत्वं पालयतां // 101 // अथ पिण्डाधिकारे पानकग्रहणविधिमाह - गिण्हिज्ज आरनालं अंबिलधोअणतिदंडउक्कलियं / वन्नंतराइपत्तं फासुअसलिलंपि तदभावे // 102 // पिण्डग्रहणसमये साधुरारनालं-अवश्रावणं गृह्णीयात् आम्बिलंकाञ्जिकं तन्दुलादिधावनं त्रिदण्डोत्कलितमुष्णोदकं वर्णान्तरादिप्राप्तं अन्यत् प्रासुकजलमपि गृह्णीयादिति योगः, परं तदभावे-तस्योष्णोदकस्याप्राप्तौ, यदाहु:"उस्सेइम 1 संसेइम 2 तंदुल 3 तिल 4 तुस 5 जवोदगा 6 ऽऽयामं 7 / सोवीरं 8 सुद्धवियडं 9 अंबड 10 अंबाडय 11 कविटुं 12 // 1 // माउलिंग 13 दक्खा 14 दाडिम 15 खज्जुर 16 नालियर 17 कयर 18 बदरफलं 19 / आमलयं 20 चिंतापाणगाई 21 पढमंगभणियाइं // 2 // " किञ्च - अन्नजलं उण्हं वा कसायदव्वेहिं मीसियं वावि / कप्पइ जईण ननं सुविहियकप्पट्ठियाणं 2 च // 1 // सीओदगं न सेविज्जा, सिलावुटुं हिमाणि य / उसिणोदगं तत्तफासुअं, पडिगाहिज्ज संजए // 2 // उसिणोदगं तिदण्डुक्कलियं फासुअजलं तु जइकप्पं / नवरि गिलाणाइकए पहरतिगोवरि धरेयव्वं // 3 // जायइ सचित्तया से गिम्हमि य पहरपंचगस्सुवरि / चउपहरुवरिं सिसिरे वासासु जलं तिपहरुवरि // 4 // // 102 //