________________ 155 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता "पत्तगठवणं तह गुच्छओ य पायपडिलेहिणी चेव / तिहंपि हुप्पमाणं विहत्थि चउरंगुलं चेव // 1 // " पात्रकेसरिका उक्तैव, उक्तं च - "पायपमज्जणहेउं केसरिया सा पुणो भवे एक्का / गुच्छगपत्तट्ठवणं एक्केक्कं गणणमाणेणं // 1 // " ज० | म० / उ० काल उष्ण 3 / 4 / 5 | शीत | 4 / 5 / 6 | वर्षा 5 / 6 / 7 / अथ पटलानां प्रमाणं, यदाहुः - 'कयलीगब्भदलसमा पडला क्किट्ठमज्झिमजहन्ना / गिम्हे हेमंतंमि वासासु अ पाणरक्खट्ठा // 1 // तिन्नि चउ पंच गिम्हे चउरो पंच च्छगं च हेमन्ते / पंच छ सत्त वासासु हुंति घणमसिणरूवा ते // 2 // " अर्थस्तु यन्त्रादवसेयः / अथ पटलानां प्रमाणमाह - "अड्डाइज्जा हत्था दीहा छत्तीसअंगुले रुंदा / बीअं पडिग्गहाउ सरीराउ प्पमाणेणं // 1 // " तथा रजस्त्राणमानमाह - माणं तु रयत्ताणे भाणपमाणेण होइ कायव्वं / पायाहिणं कुणंतं मज्झे चउरंगुलं कमइ // 1 // गुच्छक उक्तार्थः, एष पात्रनिर्योगः-पात्रपरिकरः // 53 // तथा ग्रन्थकृत् सम्प्रति पडलानां स्वरूपमाह -