________________ श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता पडला पुण घणमसिणा गिम्हाइसु ति चऊ जहण्णेणं / पोत्तिव्व पडलगुच्छाइ पेहे पणवीसठाणेहिं // 54 // पडलानि पुनर्घनानि-दृढानि मसृणानि भवन्तीति शेषः, तथा पञ्च चत्वारि जघन्यादीनि जायन्ते, अयमर्थः व्याख्यातपूर्व एव, तत एव स्पष्टो बोद्धव्यः, उत्तरार्द्धन पात्रादीनां प्रतिलेखनाविधिमाह - तत्र पोतिकेव मुखपोतिकेव पडलानि गुच्छकादीनि च पञ्चविंशतिभिः स्थानः-पञ्चविंशतिप्रतिलेखनाप्रकारैः प्रतिलेखयेत्, उक्तं च - "मुह वत्थे तह देहे गुच्छे पडलाइएसु पत्तेयं / पणवीसा पणवीसा ठाणा भणिया जिणिदेहिं // 1 // चक्खुनिरिक्खणमेगं पुरिमा छच्चेव पुव्व कायव्वा / अक्खोडा पक्खोडा नव नव पणवीसं वत्थंमि // 2 // भुअसिरि मुहहियए तिय 2 चउ पुट्टि छ पय पणवीसा / सिरपुट्टिहिययवज्जा तणु पनरस ठाण इत्थीणं // 3 // " इति प्रतिलेखनाविधिः / अथ पात्रकविशेषविधिश्चायं - "आगंतुग संमुच्छिम हरितणुपमुहाण जाणणट्ठाए / पढमं करेइ दिढेि नासापमुहेहिं उवओगं // 1 // मुहणंतएण गुच्छं गुच्छंगलयंगुलीहिं पडलाहिं / भूमिओ चउरंगुल पत्तमपत्तं च पेहिज्जा // 2 // गुच्छगपडलग तह पत्तकेसरि पत्तबंध पत्ताई / रयत्ताण पत्तठावण पडिलेहा पत्तनिज्जोगो // 3 // बारस बाहिं ठाणा बारस ठाणाइं हुंति मज्झंमि / पत्तपडिलेहणाए पणवीसइमो करप्फंसो // 4 // पत्ताणं पडिलेहा संमं जम्मंतरंमि तह विहिया / जह वक्कलचीरिजई जाईसरणं समणुपत्तो // 5 //