________________ 142 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता तुण्हिक्को इक्कमणो उवउत्तो चत्तअन्नवावारो / दयपरिणामंमि ठिओ ताहे पडिलेहणं कुज्जा // 31 // अंगपडिलेहणं लहुवंदणजुअलेण संदिसावित्ता / पडिलेहइ ठवणगुरुं ठवणं ठाणे पुणो पुत्ती // 32 // उवहिं संदेसाविय छोहावंदणजुएण पडिलेहे / छोहावंदण लहुवंदणा खमासमण एगट्ठा // 33 // अह रविउदए वसहि सुपमज्जिय पुंजमुद्धरेऊण / परिसोहित्ता इरिया पडिक्कमिय पमज्जए (पवेयए )वसहिं // 34 // पडिलेहा दिदिकया रयहरणाई पमज्जणं बिंति / कालग्गहणे पोत्तिय वसही कालप्पवेयणयं // 35 // इह प्रतिलेखनासमये लघुवन्दनेन-'इच्छामिखमासमणो' इत्यादिरूपेण पोतिकां-मुखवस्त्रिका प्रतिलेखयति, उत्तरार्द्धन तत्प्रतिलेखनाक्रममाह - प्रथमप्रतिलेखनायां-प्रभातप्रतिलेखनायां अन्तर्निषद्यां-अभ्यन्तरनिषद्यां प्रतिलेखयेत्, मध्याह्ने पुनः-तृतीयप्रहरप्रतिलेखनायां प्रथमं बाह्यनिषद्यां प्रतिलेखयेत् साधुरिति शेषः // 30 // केन विधिना प्रतिलेखनां करोतीत्याशङ्क्याह - तस्मिन् प्रतिलेखनासमये प्रतिलेखनां कुर्यात्, यतिरिति शेषः, कथम्भूतः ?तूष्णीको-मुखरतारहितः, पुनः कथम्भूतः ?-एकमनाः-सङ्कल्पविकल्परहितः, पुनरपि कथम्भूतः ?-उद्यमपरः', पुनः कः ?-त्यक्तान्यव्यापारः, पुनः क० ?-दयापरिणामे स्थितः-सदयहृदयः // 31 // . तथा पुनरपि प्रतिलेखनां केन क्रमेण करोतीत्याह-अङ्गप्रतिलेखनां 1. मूले - उवउत्तो।