________________ 135 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता "तण्हावुच्छेएणं अउलोवसमो भवे मणुस्साणं / अउलोवसमेण पुणो पच्चक्खाणं हवइ सुद्धं // 2 // " अथ प्रत्याख्यानप्रधानफलमाह - "पच्चक्खाणमिणं सेविऊण भावेण जिणवरुढेि / पत्ता अणंतजीवा सासयसुक्खं अणाबाहं // 1 // " अथ प्रत्याख्यानं कथं करोति ?, "कियकम्माइविहिन्नू उवओगपरो अ असढभावो अ। संविग्गथिरपइन्नो पच्चक्खाविंतओ होइ // 1 // " तथा - "एत्थं पच्चक्खायापच्चक्खाविंतयाण चउभंगी। जाणगऽजाणपएहिं निप्फन्ना होइ नायव्वा // 1 // " यथा ज्ञो ज्ञस्य पार्श्वे प्रत्याख्यातीति शुद्धः 1 ज्ञोऽज्ञस्य-मूर्खस्य पार्श्वे प्रत्याख्यातीति शुद्धः 2 अज्ञो ज्ञस्य पार्वे प्रत्याख्यातीति शुद्धः 3, अज्ञोऽज्ञस्य पार्श्वे करोतीति न शुद्धः 4 चतुर्भङ्गी // 20 // अथ नमस्कारसहितादिषु प्रत्याख्यानेषु कान्याद्याक्षराणीत्याशङ्क्याह - नवकारसहियं 1 पोरसि 2 सड्ढा 3 पुरिमे 4 अवद्ध 5 उववासो 6 / उ१ पो 2 सा 3 सू 4 सू५ सू 6 नेया पढमक्खरा कमसो // 21 // नमस्कारसहिते तथा पौरुष्यां पुरिमार्दै अपार्धे उपवासे च एतानि क्रमशः-अनुक्रमेण प्रथमाक्षराणि ज्ञातव्यानि, एतानि कानि ?, उ पो सा सू सू सू, यथा उग्गए सूरे नमुक्कारसहियं पच्चक्खाइ 1 पोरसिअं० उग्गए सू० चउ० 2 साढपोरसी० उग्गए 3 सूरे उग्गए पुरिमढे प० 4 सूरे उग्गए अवडं० प० 5 सूरे उग्गए अभत्तटुं पच्चक्खाइ 6 // अथ