________________ 114 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता तदनु प्रतिक्रामति-प्रतिक्रमणं तथा करोति यथा दश प्रतिलेखनाः-मुखवस्त्रिकारजोहरणादिकाः तत्कृतानन्तरं सूर्य उद्गच्छति-उदयं प्राप्नोति / प्रतिक्रमणं नियुक्तौ पञ्चधोक्तं "पडिकमणं देवसियं राइयमित्तरियमावकहियं च / पक्खिय चाउम्मासिय संवच्छरियत्ति सत्तेए // 1 // " तत् प्रतिक्रमणं पञ्चाचारविशुद्धिनिमित्तं क्रियते, तदाहुः"पंचविहायारविसुद्धिहेउमिह साहु सावगो वावि / ' पडिकमणं सह गुरुणा गुरुविरहे कुणइ एक्कोवि // 1 // " // 8 // अथ आचार्यादीनाश्रित्य विशेषविधेर्निर्णयमाह - आयरियगिलाणाई जे नवि जग्गंति पच्छिमे जामे / आवस्सयस्स समए कज्जं इरियाइयं तेहिं // 9 // आचार्यग्लानादयो ये पश्चिमयामे-क्षपान्तिमे यामे न जाग्रतिन निद्रात्यागं कुर्वन्ति, आगमे तेषां तत्राजागरणभणनात्, यदाहुः"सव्वेऽवि पढमजामे दोन्नि य वसहाण आइमा जामा / तइओ होइ गुरूणं चउत्थ सव्वे गुरू सुअइ // 1 // " आवश्यकस्य समये-प्रतिक्रमणस्य प्रस्तावे तैः-आचार्यादिभिरीर्यादिकं कार्य-ईर्यापथिक्यादि समग्रं विधेयं / तत्रावश्यकं किं नाम?, तथा चोक्तं अनुयोगद्वारे - "समणेण सावएण य अवस्सकायव्वयं हवइ जम्हा / अंतो अहोनिसिस्स य तहा आवस्सयं नाम // 1 // " // 9 // तदेव पूर्वोक्तमीर्यादिकं किमित्याशङ्क्याह - इरिया कुसुमिणुसग्गो सक्कत्थय साहुण नमण सज्झायं / चउरोऽवि खमासमणा सव्वस्सवि दंडओ चेव // 10 //