________________ तृतीयसर्ग: (10 तत्पु०) हा हा ! कष्टम् ! कष्टम् ! इति यत् अशोचि निन्दितः, तेन हेतुना स नाम्ना संशया हाहा एव अभूत् जातः / नलगानमाधुरी दिव्यगायकेपि न लभ्यते इति मावः / / 27 / / व्याकरण-प्रशोचि शुच् +लुङ् ( कर्मणि ) निपीय इस सम्बन्ध के प्रथम सर्म का प्रथम श्लोक देखिए। गायनः गावतीति /गै+ण्युट् / अनुवाद-आमोद-प्रमोद-क्षणों में उस ( नल ) के गाने के ( माधुर्य आदि ) गुणों को सुनकर यहाँ से स्वर्ग लोक गये हुए हमने गाते हुए इन्द्र के गायक को 'हा ! हा' ( छिः छिः, कुछ नहीं) इस तरह जो निन्दा की, उससे उसका नाम ही 'हा हा' पड़ गया / / 27 // टिपणी-मल्लिनाथ ने यहाँ हंसों द्वारा की गई हरिगायन की निन्दा का सम्बन्ध न होने पर मो सम्बन्ध बताने से असम्बन्धे सम्बन्धातिशयोक्ति कहो है / 'हाहा हूहूश्चैवमाया गयस्त्रिदिवौक. साम्' इसके अनुसार इन्द्रके गायकों के नाम ही स्वतः हाहा, हूहू आदि थे, किन्तु यहाँ वह कवे की कल्पना ही है कि हंसों के हाहा करने पर हो जैसे गायक का वैसा नाम पड़ा हो / इस तरह हमारे विचार से यह उत्प्रेक्षा का विषय है, जो वाचक-पद के न होने से प्रतोयमाना ही है। 'गाय' / 'माय' में यमक और अन्यत्र वृत्त्यनुपात / शृण्वन् सदारस्तदुदारमावं हृष्यन्मुहुर्लोम पुलोमजायाः / पुण्येन नालोकत नाकपालः प्रमोदबाप्पावृतनेत्रमालः // 28 // अन्वयः-सदारः लोकरालः तदुदारभाव शृमन् प्रमोद "मालः सन् पुलोमनायाः मुहुः हृयत् लोम पुण्येन न आलोकत / टीका--दाराभिः पन्या सह वर्तमान इति सदारः (ब० बो०) दार-शम्दस्य पुस्त्वे नित्यबहु. वचनत्वे चामरः-'भूम्नि दाराः' इति / लोकगल इन्द्रः तस्य नलस्य उदारस्य मावम् ( 10 तत्पु०) औदार्य शृण्वन् याकर्णयन् प्रमोदस्यानन्दस्य यो बाष्पः अश्र ( 10 तत्प० ) तेनावृता आच्छन्ना ( तृ. तस्पु० ) नेत्र-माला ( कर्मधा० ) नेत्राणां नयनानां माला पंक्तिः (10 तत्प० ) सहस्र नेत्राणीत्यर्थः यस्य तथाभूतः ( ब० वी० ) सन् पलोमनायाः पुलोम्नो राक्षसविशेषस्य पुल्या इद्राण्या इत्यर्थः मुहुः वारं-वारं हृष्यत् उदश्चत् लोम जातावेकवचनं रोमाथि रोमाञ्च मेति यावत् पुण्येन पुलोमजायाः पूर्वजन्मकृतसुकृतेन न आलोकत अपश्यत् / समायां वर्ण्यमानं नलौदार्यमाकण्येन्द्राषी रोमाञ्चिता सत्यपि भाग्यात् हंषोंद्भूत-वाष्पाकुलसहस्रनयनेनेन्द्रेण नावलोकितेत्यर्थः // 28 // ज्याकरण-दारा:-दारयन्ति विच्छिन्दन्ति भ्रातृन् इति ( यास्कः ) / प्रमोदः प्र+/मुद्+ पञ् ( भावे ) पुलोमजा पुलोम्नो जातेति पुलोमन् + ज+ङः। अनुवाद-पत्नो-सहित इन्द्र ने उस ( नल ) का औदार्य सुनते हुए, आनन्दात्रुओं द्वारा नयनपंक्ति के ढक आने से, तथा ( इन्द्राणी के ) पुण्य से इन्द्राणी को वार वार होता हुआ रोमाश्च देखा ही नहीं / / 28 // टिप्पणी-नल को उदारता को सुनकर इन्द्राणी को शृङ्गारिक रोमाञ्च हो उठा, तो इन्द्र को आँखें आनन्दा भों से ढक गई। हजार आँखों में से किसी एक से भी बह पत्नी का रोमाश्च न