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________________ नैषधीयचरिते टिप्पणी-यहाँ कवि ने 'विरलोदय' शब्द में श्लेष रखकर जिस नर से रेफ चला गया है और रेफ के स्थान में लकार हो गया है अर्थात् नरू ही है जो हमें वश में रख सकता है-यह अर्थ मी अभिव्यक्त कर दिया है / 'शादि' 'सादि' से (श-सयोरमेदात् ) यमक, 'मोग' 'माग्यं' में छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। इष्टेन पूर्तेन नलस्य वश्याः स्वर्मोगमत्रापि सृजन्त्यमाः / महीरुहा दोहदसेकशक्तेराकालिकं कोरकमुगिरन्ति / / 21 // अन्धयः-इष्टेन पृतेन च वश्याः अमाः अत्र अपि नलस्य स्वर्भोगम् सजन्ति / महीरुहाः दोहदसेकशक्तेः आकालिकम् कोरकम् उद्गिरन्ति / / टोका-इष्टेन यज्ञादिना, ययाऽऽहात्रिः- "अग्निहोत्रं तपः सत्यं वेदानां चैव पालनम् / आतिथ्यं वैश्वदेवश्च इष्टमित्यभिधीयते // " पून कृपादिना, यथाऽऽह मनुः-'वापी-कप-तडागादि देवतायतनानि च / अन्नप्रदानमारामः पूर्तमिन्यभिधीयते" // ( 4 / 226 ) वश्याः स्ववशे कृताः अमां अमरपधर्मापो देवा इत्यर्थः अत्र भूलोकेऽपि नलस्य स्वमोंगं दिव्य सुखं सुजन्ति जनयन्ति / भूस्यायापि नलाय तदिष्टपूर्तादिकर्मभिः प्रसन्नीमृता देवाः स्वमोंगं ददतीत्यर्थः। ननु धर्मफलं तु कालान्तरे जन्मान्तरे वा मिलति, अस्मिन्नेव काले जन्मनि च कथम् ? अस्योत्तरे दृष्टान्तयति-महोरुहा वृक्षा दोहदः फलोत्पादकधूमादिश्च सेकः वृक्षे जलसिञ्चनम्च (द्वन्द्व ) तयोः शक्तेः सामर्थ्यात् ( 10 तत्पु० ) आकालिकम् असामयिकं कोरकं कड्मशम् , कोर कशब्दोऽत्र पुष्पफलादिकस्याप्युपलक्षकम् , उद्गिरन्ति उद्भावयन्ति / वृक्षाः दोहदप्राप्त्याऽकालेऽपि फल-पुष्पाणि जनयन्तीत्यर्थः // 21 // व्याकरण-इष्टेन /यज्+क्तः ( मावे ) / वश्याः -वशंगता इति वश+यत् / महीरुहाः मया रोहन्तीति मही+/रुह +कः। दोहदः दोहम् भाकर्ष ददातोति दोह+/दा+कः) प्राकालिकम् प्रकाले मवम् इति अकाल+ठक् / अनुवाद-यज्ञादि तथा कपादि-निर्माण से वश में आये हुए देवता इस लोक में मो नल हेतु दिव्य भोग का सृजन कर रहे हैं / वृक्ष दोहद ( ऊर्वरक ) तथा जल-सिंचन के प्रमाव से असामयिक कलियाँ उत्पन्न कर देते हैं // 21 // टिप्पणी-दोहद एक प्रकार के ऊर्वरक या फर्टलाइजर को कहते हैं, जो भिन्न-भिन्न वृक्षों के लिए भिन्न-भिन्न होता है, जैसे धूप का धुनों, किसी चीज का सेचन आदि। इसके लिए प्रथम सर्ग का श्लोक 82 मी देखिए। यहाँ श्लोक के पूर्वार्ध और उत्तरार्ध का प्रापस में बिम्ब-प्रतिबिम्ब माव होने से दृष्टान्तालंकार है। शब्दालंकारों में 'कालि' 'कोर' में ( रलयोरमेदात् ) छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है। सुवर्णशैलादवतीर्य तूर्ण स्वर्वाहिनीवारिकणावकीर्णैः। तं वीजयामः स्मरकेलिकाले पक्षैर्नृपं चामरबद्धसख्यः // 12 // मन्धयः-सुवर्ण-शैलात् तूर्णम् अवतीर्य स्वर्वा कोणः चामर-बद्ध-सख्यैः पक्षैः स्मर-केलि काले तम् नृपम् बोजयामः।
SR No.032784
Book TitleNaishadhiya Charitam 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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