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________________ नैषधीयचरित तृतीयसर्गः पाकुञ्चिताभ्यामथ पक्षतिभ्यां नमोविमागात्तरसाऽवतीर्य / निवेशदेशाततधूतपक्षः पपात भूमावुपभैमि हंसः // 1 // अन्वयः-अथ हंसः आकुचिताभ्याम् पक्षतिभ्याम् नमोविभागात् तरसा अवतीर्य निवेश-देशा. तत-धूत-पक्षः ( सन् ) उपभैमि भूमौ पपात / टीका-अथ मण्डलाकारेण भ्रमयानन्तरम् हंस आकुचिताभ्यां सङ्कुचिताभ्याम् पक्षतिभ्याम् पक्ष-मूलाभ्याम् ( 'सी पक्षतिः पक्षमूलम्' इत्यमरः) नमस आकाशस्य विभागात् प्रदेशात् (10 तस्पु० ) तरसा वेगेन अवतीर्य नोचैरागत्य निवेशस्य उपवेशनस्य देशे स्थाने / 10 तत्पु० ) आततो विस्तारिती ( स० तत्पु०) धूतौ कम्पिती च ( कर्मधा० ) पक्षी (कर्मधा० ) येन तथाभूतः (ब० वी०) सन् भैम्या दमयन्त्याः समीपे इत्युपभैमि ( अव्ययीभाव स० ) मूमौ धरायां पपात अवातरदित्यर्थः // 1 // व्याकरण-भातत आ+Vतन्+क्तः, धूत+ धू+क्तः ( कर्मणि)। उपभैमि अव्ययत्वात् नपुंसकत्वं हस्वत्वं च / अनुवाद-मण्डलाकार चक्कर काटने के बाद समेटे हुए डैनों से आकाश-प्रदेश से वेग के साथ नीचे उतरकर बैठने की जगह दोनों पंखों को फैलाये और हिलाये हुए हंस दमयन्ती के समीप उतर गया // 1 // टिप्पणी-यहाँ पक्षियों का यथावत् स्वभाववर्णन होने से स्वभावोक्ति अथवा जाति अलंकार है। 'पक्ष' 'पक्ष' तथा 'भूमा' मैमि' में छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। इस सर्ग में इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा-इन दोनों का सम्मिश्रण होने से उपजाति छन्द है, जिसका लक्षण थह है-'अनन्तरोदीरित. लक्ष्ममाजौ, पादौ यदीयावुपजातयस्ताः / इत्थं किलान्यास्त्रपि मिश्रितासु, वदन्ति जातिविदमेव नाम / ' इन्द्रवज्रा का लक्षण थह है-'स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः' (त, त, ज, म, ग)। उपेन्द्रवज्रा का लक्षण यह है- 'उपेन्द्रवज्रा प्रथमे लघौ सा' (ज, त, ज, ग, ग)। आकस्मिकः पक्षपुटाहतायाः क्षितेस्तदा यः स्वन उचचार / द्रागन्यविन्यस्तदृशः स तस्याः संभ्रान्तमन्तःकरणं चकार // 2 // अन्वयः-तदा पन-पुटाहतायाः क्षितेः प्राकस्मिकः यः स्वनः उच्चचार, सः अन्य-विन्यस्तदशः तस्याः अन्तःकरणम् द्राक् संभ्रान्तम् चकार /
SR No.032784
Book TitleNaishadhiya Charitam 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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