SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयसर्गः टिप्पणी-यहाँ 'शशभृद्भित्त' में लुप्तोपमा का 'रतिहासा इव' इस उत्प्रेक्षा के साथ संसृष्टि है। "मित्त' 'भित्त' में यमक 'ग्रहा गृहाः' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। नृपनीलमणीगृहत्विषामुपधेर्यत्र मयेन मास्वतः / शरणार्थमुवास वासरेऽप्यसदावृत्त्युदयत्तमं तमः // 75 // भन्वयः-यत्र मास्वतः मयेन नृपनीलमणीगृहत्विषाम् उपधेः उदयत्तमम् तमः असदाबृत्ति सत् वासरे अपि शरणार्थम् उवास। टीका-यत्र नगर्या भास्वतः सूर्यात् भयेन भीतेः नृपस्य भोमनरेशस्य नीलमपीनां नीलोपलानां ये गृहा भवनानि तेषां त्विषां कान्तोनाम् ( सर्वत्र 10 तत्पु० ) उपधेाजात् ('कपटोऽस्त्री व्याजदम्मोपधयश्मकैनवे' इत्यमरः) उदयत्तमम् अतिशयेनोदयं गच्छत् व्याप्तुवदित्यर्थः तमस्तिमिरम् न सती विद्यभाना आवृत्तिः (कर्मधा० ) पुनरावर्तनं यस्य तथाभतं सत् (ब० वी०) वासरे दिवसेऽपि शरणाथ शरपाय आश्रयायेति यावत् (चतुर्थ्य/ऽर्थेन सह नित्यसमासः ) उवास वासं चक्रे / नीलमषिमवनानां नीलाच्छटा नीला च्छटा न, किन्तु अन्धकारोऽस्ति यः खल सूर्यमीतः सन् शरणार्थमागतः रात्रिंदिवं तत्र वसतोति मावः // 75 // व्याकरण-मास्वतः मा अस्मिन्नस्तीति/मास +मतुप् म को व मोत्यर्थ में पञ्चमी / स्विषाम् विष् + क्विप् ( भावे)। उदयत्तमम् उत्+1+शतृ+तमम् / / अनुवाद-जिस ( नगरी ) में सूर्य के भय से राजा के नीलमपियों के मवनों की ( नीली) छटाओं के बहाने खूब उमड़ता हुआ अन्धकार दोबारा न आता हुआ दिन में मां शरण हेतु रहता जाता था // 75 // टिप्पणी-सर्वत्र अन्धकार रात को आता है दिन को चला जाता है, फिर रात को आ नाता है / इस तरह इसको आने-जाने को आवृत्ति बनो ही रहती है, किन्तु इस नगरो में यह बात नहीं। यहाँ तो अन्धकार बराबर रह ही रहा है। उसके दोबारा आने का प्रश्न नहीं उठता। वह अन्धकार है नीलमणियों के भवनों का नीलो छटा। इस प्रकार यहां नीलमणि-छटा का निषेध करके उसपर अन्धकार की स्थापना की गई है, अतः अपहृति है। अन्धकार के नाश के कारण वासर के होते हुए मी उसके नाश न होने में विशेषोक्ति है। नोलमणियों के भवनों में सम्पदा को अतिशयता बताने में उदात्त अलंकार है। तम के मानुष-करण में समासोक्ति है। इस तरह यहाँ इन सभी का संकर है। शब्दालंकारों में 'तमं' 'तमः' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है। सितदीप्रमणिप्रकल्पिते यदगारे हसदकरोदसि / निखिलानिशि पूर्णिमा तिथीनुपतस्थेऽतिथिरेकिका तिथिः // 6 // अन्वयः-सित-दीप-मणि-प्रकल्पिते हसदङ्क-रोदसि यदगारे निशि एकिका पूर्णिमा तिथिः निखिकान् तिथीन् अतिथिः ( सन् ) उपतस्थे। टोका-सिताः श्वेताश्च दीपाः दीप्तिमन्तश्च (कर्मधा०) ये मणयः स्फटेकोपला इत्यर्थः (कर्मधा०) तैः प्रकल्पिते विनिर्मिते (तृ० तत्पु०), हसन्त्यो स्मयमाने प्रकाशमाने इत्यर्थः अङ्के भध्ये समीप
SR No.032784
Book TitleNaishadhiya Charitam 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy