________________ चतुर्थसर्गः 215 भनुवाद-उस ( दमयन्ती ) के द्वारा काम-वेदना से जल रही अपनी छाती के ऊपर रखी गीली मृणाल लता अपने को परास्त कर देने वाली ( दमयन्ती को ) भुजाओं के पास में रहते लाज के मारे मैली पड़ जाती थी।। 34 // टिप्पणी-वैसे तो छाती पर रखी मृणाल लता ज्वरोष्मा के कारण मुर्माकर काली पड़ जातो यो, लेकिन विद्याधर और मल्लिनाथ ने यहाँ कल्पना की है कि दमयन्ती के स्वविजयी भुजाओं के पास में रहते मानो वह लाज के मारे फीकी पड़ जाती थो, इस तरह वे उत्प्रेक्षा मानते हैं। उत्प्रेक्षावाचक पद के अमाव में यह उत्प्रेक्षा वाच्य नहीं प्रतीयमान ही हो सकती है, हमारे विचार से उत्प्रेक्षा-वाचक शब्द के अभाव में मृणाल लता पर चेतन-व्यवहार-समारोप होने के कारण यहाँ समासोक्ति बन सकती है। कोई भी चेतन व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से यदि हार खा गया हो, तो उसके सामने उसका चहरा स्याह पड़ जाता है। मृणालों के फीके पड़ जाने से विरह-तार का अतिशय ध्यक्त होता है / 'मजद्-भुजयोः' के छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। पिकरुतिश्रुतिकम्पिनि शैवलं हृदि तयाद्मृणाललतार्पिता। सतततद्गतहृच्छयकेतुना हतमिव स्वतनूघनधर्षिणा // 35 // अन्वयः-पिक....."कम्पिनि हृदये तया निहितम् शैवलम् विचलत् स्व-तनू धन-धर्षिया सतत. केतुना हनम् इव बमौ / टीका-पिकस्य कोकिलस्य या रुतिः कूजितम् तस्याः श्रुत्या अवणेन ( उभयत्र प० तत्पु० ) तया कम्पितुं वेपितुं शीलमस्येति तथोक्ते ( उपपद तत्पु० ) हदये हृदि तया दमयन्त्या निहितं निवेशितम् शैवलम् शैवालं जलनीली, जललतेति यावत् विचलत् कम्पमानम् सत् स्वस्य तनूं शरीरम् ( 10 तत्पु० ) घनं भृशं यथा स्यात्तया घर्षति आहन्त्येवं शोलमस्येति तथोक्तेन ( उपपद तत्पु० ) सततं निरन्तरं यथा स्यात्तथा तस्यां दमयन्त्यां गतस्य निरन्तरं तद्धृदयस्थितस्येत्यर्थः ( स० तत्पु० ) हृच्छयस्य कामस्य ( कर्मधा० ) केतुना ध्वजेन मत्स्येनेत्यर्थः अत एव कामः मकरध्वज इत्युच्यते हतम् ताडितम् इव बमौ शुशुमे। हृदयस्थितशैवालं हृदयकम्पनेन सह कम्पमानं सत् दमयन्तीहृदयस्थितकामस्य केतुभूतेन मत्स्येन संघट्टमानमिव प्रतीयते स्मेति भावः // 35 // ___व्याकरख-रुतम्-V+क्तः ( भावे ) / श्रुतिः- श्रु+क्तिन् ( भावे ) हुन्छयःहृदि हृदये शय इति हृच्छयः ( स० तत्पु० ) सप्तमी का ( 'शय-वास.' 6 / 3 / 18 ) विकल्प से लोप। जहाँ लोप नहीं, वहाँ 'हृदिशयः' बनेगा। शयः शेते इति / शी+अच् ( कर्तरि ) / अनुवाद-कोयल की कूक सुनने से कॉप उठे हृदय के ऊपर उस ( दमयन्ती ) के द्वारा रखा शिवाल हिलता हुआ ऐसा शोमित हो रहा था मानो अपने शरीर को खुब रमड़ते हुए, उस (दम-. यन्ती ) के हृदय में स्थित कामदेव के ध्वज-मत्स्य-ने उससे टक्कर मारी है / // 35 // टिप्पणी-ठंडक पहुँचाने हेतु छाती पर रखा शिवाल छाती के हिलते हिले, यह स्वामाविक था, किन्तु इस पर कवि ने यह कल्पना को है कि शिवाल इसलिए हिला कि दमयन्ती के हृदय-गत काम के ध्वज-मस्य-को खुजली लगी इसलिए अपना शरीर रगड़ते हुए उसने शिवाल से टक्कर