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________________ नैषधीयचरिते (पं० तत्पु०) पूर्वदिवसापेक्षया परदिने महतीं विधाम् अवस्थां वह धारयत् ऐचयत व्यलोक्यत सखीभिरिति शेषः। काम-वेदनया तन्मुखं रवि-किरण म्लानचन्द्रतुल्यं जातमिति भावः // 6 // व्याकरण-तापज ताप+/जन्+डः। अहरहः वीप्सामें द्वित्व और कालात्यन्तसंयोग में दि० / ग्लपितस्य ग्ल+पिच्+क्त ( कर्मणि ) / ऐचयत Vईक्ष् +लङ् ( कर्मणि ) / अनुवाद-काम-जनित ज्वर से फीका पड़ा हुआ उस ( दमयन्ती ) का चेहरा सूय के तेज से दिनों-दिन और और अधिक फीके पड़े चन्द्रमा की दशा अपनाता हुआ दिखाई देता था // 6 // टिप्पणी-दूसरे का धर्म दूसरा अपनावे, यह असम्भब बात है, इसलिए चन्द्रमा के फीकेपन की तरह दमयन्ती के चेहरे का फीकापन है–यों दो 'धम का परस्पर बिम्ब-प्रतिबिम्बमाव होने से यहाँ निदर्शनालंकार है। अहरहः इस वीप्सा में कुछ आलंकारिकों ने वीप्सालंकार माना है। 'कमल' 'कोम' 'धिका' 'धिकाम्' तथा 'विधोः' 'विधाम्' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है। पूर्वश्लोक में सूचित चिन्ता नामक संचारी भावको प्रतिक्रिया यहाँ मुखके फीकेपन में बताई गई है। तरुणतातपनद्युतिनिर्मित ढिम तरकुचकुम्मयुगं तथा / अनलसङ्गतितापमुपेतु नो कुसुमचापकुलालविलासजम् // 7 // अन्वयः-कुसुम.. जम् तत्कुच-कुम्मयुगम् तरुण 'द्रढिम ( सत् ) तदा अनल-मंगतितापम् नो उपेतु ( किम् ) ? टीका-कुसुमं चापो यस्य सः (10 वी० ) काम इत्यर्थः एत्र कुलालः कुम्भकारः / कर्मधा०) तस्य विलासः लीला व्यापार इति यावत् ( 10 तत्पु० ) तस्मात् जायते इति तथोक्तम् ( उपपद तत्पु० ) कुम्मकार-निर्मितभित्यर्थः तस्या दमयन्त्याः कुची उरोजौ ( घ० तत्पु० ) एव कुम्मो घटौ / कर्मधा० ) तयोः युगं द्वयम् ( 10 तत्पु०) तरुणाया मावस्तरुणता यौवनम् एव तरणिः सूर्यः ( कर्मधा० ) तस्य धुत्या दीप्त्या (10 तत्पु० ) निर्मितो जनितः ( तृ. तत्पु०) इढिमा दाढयम् कठिनतेत्यर्थः ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूतम् (ब० वी० ) सत् तदा तस्मिन् समये नलेन संगतिः संयोगः ( तृ० तत्पु० ) न नलसंगतिः इत्यनलसंगतिः (नञ् तत्पु० ) नलवियोग इत्यर्थः तया तापं संतापम् ( तृ० तत्पु०) एव अनलेन वह्निना संगतिः सम्पर्कः ( तृ० तत्पु०) तया तापम् ( त० तत्पु० ) पाकं नो न उपैतु प्राप्नोतु अपितु उपैतु एवेति काकु:, कुलाल-निर्मितो घटो यथा सौरातपे तप्त्वा दृढीभूतः सन् कुलालेन पाकाय वह्नौ ताप्यते तथैव दमयन्तीकुच युगलमपि यौवनौत्पन्नकाठिन्यं वहत् नलविरहेण संताप्यते इति मावः // 7 // __व्याकरण-विलासजम् विलास+/जन्+डः / द्रढिमा दृढस्य भाव इति दृढ+इमनिच् ऋ को र / ध्यान रहे कि इमनिच वाले पुल्लिंग होते हैं। अनुवाद-कामदेव-रूपी कुम्हार को लीला से बने उस ( दमयन्ती ) के दो कुच कुम्म यौवनरूपी सूर्यके तेज से सख्त किये जाते हुए तब अ-नल संयोग ( नल-वियोग ) के संताप के रूप में अनक-(अग्नि ) संपर्क द्वारा क्यों नहीं तपाये जायें ?
SR No.032784
Book TitleNaishadhiya Charitam 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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