________________ परिशिष्टम्-२ अतीव सुकुमारानी तनुमध्यां सुलोचनाम् / पाक्षिपन्तीमिव प्रमा शशिनः स्वेन तेजसा // 79 // तस्य दृष्ट्रव ववृधे कामस्तां चारहासिनीम् / सत्यं चिकोर्षमापस्तु धारयामास हृच्छयम् // 77 // ततस्ता नैषधं दृष्ट्वा सम्भ्रान्ताः परमाननाः।। आसनेभ्यः समुत्पेतुस्तेजसा तस्य धर्षिताः // 8 // प्रशशंमुश्च सुप्रीता नलं ता विस्मयान्विताः। न चैनमभ्यमाषन्त मनोमिस्त्वन्यपूजयन् // 7 // अहो रूपमहो कान्तिरहो धैर्य महात्मनः / कोऽयं देवोऽथवा यक्षो गन्धवों वा भविष्यति // 80 // न तास्तं शक्नुवन्ति स्म व्याहर्तुमपि किञ्चन / तेजसा धर्षितास्तस्य लज्जावत्यो वराङ्गनाः // 1 // अथैनं स्मयमानं तु स्मितपूर्वामिभाषिषो। दमयन्तो नलं वीरमभ्यमाषत विस्मिता // 82 // “कस्त्वं सर्वानवधान मम हृच्छयवर्धन / प्राप्तोऽस्यमरवद् वीर शातुमिच्छामि तेऽनष // 3 // कथमागमनं चेह कथं चासि न लक्षितः। सुरक्षितं हि मे वेश्म राजा चैवोप्रशासनः" // 4 // एवमुक्तस्तु वैदा नलस्तां प्रत्युवाच ह। "नलं मां विद्धि कल्याणि देवदूतमिहागतम् // 85 // नव उवाच देवास्त्वां प्राप्तुमिच्छन्ति शक्रोऽग्निवरुषो यमः / तेषामन्यतमं देवं पति वरय शोमने // 6 // तेषामेव प्रभावेण प्रविष्टोऽहमलक्षितः। . प्रविशन्तं न मां कश्चिदपश्यन्नाप्यवारयत् // 8 // एतदर्थमहं मद्रे प्रेषितः मुरसत्तमैः / एतच्छ्रुत्वा शुमे बुद्धि प्रकुरुष्व यथेच्छसि" // 88 // सा नमस्कृत्य देवेभ्यः प्रहस्य नलमब्रवीत् / "प्रपयस्व यथाश्रद्धं राजन् किं करवाणि ते // 8 // अहं चैव हि यच्चान्यन्ममास्ति वसु किश्चन / तत् सर्व तव विश्रब्धं कुरु प्रषयमीश्वर // 9 // हंसानां वचनं यत्तु तन्मां दहति पार्थिव / स्वरकते हि मया वीर राजाना संनिपातिताः / / 91 //