________________ परिशिष्टम्-२ तुलनात्मकाध्ययनार्थ महाभारतीयनलोपाख्यानान्तर्गतस्वयं घरपर्यन्तः मूल-कथाभागः / आसीद राजा नलो नाम वीरसेनसुतो बली। उपपन्नो गुणेरिष्ट रूपवानश्वकोविदः // 1 // अतिष्ठन्मनुजेन्द्राणां मूनि देवपतियथा / उपयुपरि सर्वेषामादित्य इव तेजसा // 2 // ब्रह्मण्यो वेदविच्छूरो निषधेषु महीपतिः। अक्षप्रियः सत्यवादी महानक्षौहिषीपतिः // 3 // ईप्सितो वरनारीपामुदारः संपतेन्द्रियः। रक्षिता धन्विना भेष्ठः साक्षादिव मनुः स्वयम् // 4 // तथैवासीद् विदभेषु मीमो मीमपराक्रमः / शूरः सर्वगुणैर्युक्तः प्रजाकामः स चाप्रजः // 5 // स प्रनाथे परं यत्नमकरोत् सुसमाहितः।। तमभ्यगच्छद् ब्रह्मषिमनो नाम मारत ? // 6 // तं स मीमः प्रजाकामस्तोषयामास धर्मवित् / महिष्या सह राजेन्द्रः सत्कारेण सुवर्चसम् // 7 // तस्मै प्रसन्नो दमनः सभार्याय वरं ददौ। कन्यारत्नं कुमासंश्च त्रीनुदारान् महायशाः॥८॥ दमयन्ती दमं दान्तं दमनं च सुवर्चसम् / उपपन्नान् गुपः सवर्मीमान् भीमपराक्रमान् // 9 // दमयन्ती तु रूपेण तेजसा यशसा मिया / सौभाग्येन च लोकेषु यशः प्राप सुमध्यमा // 10 // अथ तो वयसि प्राप्ते दासीनां समलंकृताम्। शतं शतं सखीनां च पर्युपासच्छचीमिव // 11 // तत्र स्म राजते भैमी सर्वाभरणभूषिता। सखीमध्येऽनवचाङ्गो विधत्सोदामनी यथा // 12 //