________________ 148 नैषधीयचरिते अनुवाद-दोवार को अलंकृत किये, चित्रमयो तुम्हें उत्कण्ठा-पर्वक एकतान दृष्टि से देखता हुमा वह राजा (नल) आँखों के अश्रु-प्रवाहों से उत्पन्न चक्षु-राग ( आँखों की लाली) अपने में रखता हुखा ऐसा लगता है मानो वह तुम्हारे द्वारा उत्पन्न चक्षुराग ( नयन-पोति ) रख रहा हो // 103 // टिप्पणी-यहाँ निनिमेषत्व कृत चक्षुराग ( आँखों की लाली ) पर दमयन्ती-कृत चक्षुराग (नयनप्रीति ) की कल्पना करने से उत्प्रेक्षा अलंकार है जिसका वाचक 'नु' शब्द है / वह 'राग' सम्द को लेकर श्लेषानुप्राणित है। किन्तु मल्लि. यहाँ सन्देहालंकार मानते हैं, क्योंकि नु शब्द सन्देह-वाचक मी होता है अर्थात् नल में जो चक्षराग हुआ है, वह क्या एक टक देखने और प्रथप्रवाहों के कारण हुआ है या फिर भैमी का चित्र देखकर उसके प्रति प्रेम होने के कारण हुआ है। हमारे साहित्यिकों ने दश कामदशायें गिना रखी हैं जिनमें सब से पहली आती है नयन-प्रीति जिसे 'मा चार होना' अथवा 'आँखों का टकराना' भी कहते हैं। यहाँ आँखों का टकराव भैमी के चित्र के साथ ही समझ लीजिए, क्योंकि प्रत्यक्ष अभी दोनों का नहीं हुआ है / दश कामदशायें ये हैं: "नयनप्रीतिः प्रथम, चित्तासङ्गस्ततोऽथ सङ्कल्पः। निद्राच्छेदस्तनुता, विषयनिवृत्तिनपानाशः। उन्मादो भू. मृतिरित्येताः स्मरदशा दर्शव स्युः॥ उक्त श्लोक में 'चरागः' अर्थात् 'नयनप्रीति' बताई गई है। शब्दालंकारों में 'चक्षुर' 'चक्षू' में छेक और अन्यत्र वृत्त्यनुपास है। पातुर्दशालेख्यमयीं नृपस्य त्वामादरादस्तनिमीलयास्ते / ममेदमित्यश्रुणि नेत्रवृत्तेः प्रीतेनिमेषच्छिदया विवादः // 104 // अन्वयः-अस्त-निमीलया दृशा आलेख्यमयीम् त्वाम् आदरात् पातुः नृपस्य नेत्रवृत्तेः प्रीतेः निमेष-च्छिदया अश्रुणि 'मम इदम्' इति विवादः आस्ते / टीका-अस्तः मतः निमोलः निमीलनम् यस्यास्तथाभूतया (ब० वी० ) निनिमेषयेत्यर्थः दशा दृष्टया माळेख्यम् एवालेख्यमयीम् चित्रमयीं त्वाम् आदरात् सोत्कण्ठं पातुः द्रष्टुः नृपस्य राशो नलस्य नेत्रयोः नयनयोः वृत्तिः वतनं स्थितिरिति यावत् / स० तत्पु० ) यस्याः तथाभूतायाः (ब० वी० ) प्रातः प्रम्पः निमेषस्य निमीलनस्य छिदया विच्छेदेन सह अणि प्रविषये 'मम इदम्' मत्कृतमिदम् इत्यहपूविकया विवादः कलहः बास्ते जायते इत्यर्थः। तव चित्रं विलोक्य नलस्य योऽश्रुपातो भवति तमधिकृत्य नयनप्रीतिः कथयति मज्जन्योऽयम् , निमेषच्छिदाऽपि कथयति मज्जन्योऽयम् इत्युमयं कलहायते इति मावः // 104 // म्याकरण-भालेख्यमयीम् अत्र स्वरूपा) मयट् / पातुः पा+तन् (प.) तृखन्त होने से 'स्वाम्' में षष्ठी-निषेध ( 'न लोका.' श६९ ) / छिदा छिद्+ +टाप् / अनुवाद-निनिष दृष्टि से चित्र के रूप में तुम्हारा उत्कण्ठा के साथ पान करने वाले राजा (नल ) के अश्रुपात को देकर 'यह मैने कराया है। इस तरह राषा की 'नयनप्रीति' और निनिमेषता के बीच विवाद उठा रहता है // 104 //