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________________ प्रथमः सगः टिप्पणी-इस श्लोक में कवि ने श्लेषालकार का चमत्कार भर रखा है / पटीयान् कवि,बुध आदि सारे शब्द द्वयर्थक हैं। नल के पक्ष में कवि और बुध शब्द को 'जातावेकवचनम्' समझकर बहथंक लेना है जबकि सूर्य की तरफ वे एक-एक ही ग्रह हैं / ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार 'बुध-शुको सदा पूर्वोत्तरराशिस्थितौ' होते हैं और सूर्य के समीप रहते हैं / नल के समीप मो कवियों और विद्वानों का जमघट लगा रहता था। तेज में नल का सूर्य के साथ आर्थिक सादृश्य रहते हुए भा अन्यत्र शाब्दिक सादृश्य हो है अतः यह श्लिष्टोपमा कहलाती है। 'दिनेश्वरश्रीः' में लुप्तोपमा मी है // 17 // अधोविधानात् कमलप्रवालयोः शिरःसु दानादखिलक्षमाभुजाम् / पुरेदमूव भवतीति वेधसा पदं किमस्याङ्कितमूर्ध्वरेखया // 18 // अन्धयः-कमल-प्रवालयोः अधोविधानात् अखिल-क्षमाभुजाम् शिरस्सु दानात् ( च ) 'इदम् पुरा ऊर्च मवति' इति ( कारणात् ) वेसा अस्य पदम् ऊर्ध्व-रेखया अङ्कितम् किम् ? __टीका-कमल-कमलं च प्रवालं चेति कमल-प्रबाले (इन्द्र ) तयोः= अधोविधानात् = नीचैः करणात् अरुणत्व-स्निग्धत्वयोः निर्मितत्वात् इत्यर्थः तथा अखि०-अखिलाच ते समाभुजः =राजानः ( कर्मधा० ) तेषाम् शिरस्सु मूर्धसु दानात् = विधानात् स्थापनादित्यर्थः= 'इदम् नल-पदम् पुरा-अग्रे भविष्यत्काले इति यावत् ऊर्ध्वम् - उत्कृष्टम् उरि च भवतिभविष्यति' इति कारणात् वेधसा=ब्रह्मणा प्रस्य = नलस्य पदम् =पादम् ऊचर्चा =उपरि गता रेखा=पंक्तिः तया ( कर्मधा० ) अङ्कितम् चिहितम् किम् इत्युत्प्रेक्षायाम् // 17 // व्याकरण-क्षमाभुजाम्-क्षमाम् (पृथिवीम् / भुम्जन्ति इति क्षमा+भुज+क्विप् ( कर्तरि ) पुरा ऊर्ध्व भवात' यहाँ 'यावत्-पुरा-निपातयोर्लट' (पा० 3 / 3.4 ) से 'पुरा' के योग में भविष्यदर्थ में लट् हुआ है। हिन्दी-कमल और किसलय को नीचे कर देने ( तथा ) सभी राजाओं के सिरों पर रखने से 'यह ( पैर ) आगे ऊपर ( ही ) होगा' इस कारण ब्रह्मा ने इस / नल) का पैर ऊर्ध्व रेखा से चिह्नित कर दिया था क्या?॥१८॥ टिप्पणी--सामुद्रिक शास्त्रानुसार 'ऊर्ध्वरेखादिनपदः सवोत्कर्ष मजेत् पुमान् / अर्थात् जिस व्यक्ति के पैर पर ऊपर को रेखा जाती है, वह बड़ा उत्कर्षशाली हाता है। इसी तथ्य पर कवि ने कल्पना की है / नल का पैर कमल और किसलय को नीचे किये हुए अर्थात् उनसे ऊपर ( उत्कृष्ट ) था, साथ ही राजाओं के सिरों के भी कार था। यहाँ 'किम्' शब्द के उत्प्रक्षा-वाचक होने से उत्प्रेक्षा है उपमान कमल और प्रवाल का तिरस्कार करने से साथ में प्रतीप भी है। जगज्जयं तेन च कोशमक्षयं प्रणीतवाशैशवशेषवानयम् / सखा रतीशस्य ऋतुर्यथा वनं वपुस्तथालिङ्गदथास्य यौवनम् // 19 // अन्वयः-शैशवशेषवान् अयम् जगज्जयम् तेन च कोशम् अक्षयम् प्रपीतवान् / अथ यथा रतीशस्य सखा ऋतुः वनम् ( आलिङ्गति ) तथा यौवनम् अस्य वपुः आलिङ्गत् / / टीका-शैश० शिशोः भावः शैशवम् तस्य शेषः (10 तत्पु०) मस्मिन् अस्तीति तथोक्तः
SR No.032783
Book TitleNaishadhiya Charitam 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1997
Total Pages164
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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