SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 12 ] खेल रही थी। मिलकर नलगुष्प-गान द्वारा उसे उनकी ओर और अधिक आकृष्ट करके उन्हें ही वरने हेतु पक्का कर बैठा। वापस आकर हंस ने दमयन्ती का निश्चय राजा नल को सुना दिया। फिर तो क्या था, दोनों ओर हृदय में धुंधुंआ रहो कामाग्नि सरासर सुलगने लगी। विरह में हृदय की तड़पन अधिकाधिक बढ़ चली। विदर्भनरेश भोम लड़की की हालत देखकर भांप जाते हैं कि वह विवाह चाहती है। उन्होंने स्वयंवर के आयोजन का निश्चय कर लिया। सभी देश-विदेशों के राजकुमारों को निमंत्रण भेज दिए गये / क्योकि स्वर्गलोक तक में भी दमयन्ती के अनुपम सौन्दर्य की धाक जमी हुई थी, इसलिए नारद से जब उसके स्वयंवर का समा वार मिला, तो इन्द्र, वरुण, अग्नि और यम-चारों देवता मी अपने-अपने वाहनों पर चढ़ कर स्वयंवर में सम्मिलित होने चल पड़ते है। अचानक रास्ते में अपने रथ में सवार हो स्वयंवर में जाते हुए नल से उनकी भेंट हो जाती है। उन्होंने बड़ी चालाकी से राजा के सौजन्य का लाभ उठाकर उन्हें इस बात के लिए तय्यार कर लिया कि वे उनकी तरफ से दूत बनकर गुप्त रूप से दमयन्ती के पास जायेंगे और उससे अनुरोध करेंगे कि वह चारों देवताओं में से किसी एक का वरण करे, अन्य का नहीं। नल वचन-बद्ध थे। देवताओं द्वारा दी हुई स्वेच्छानुसार अदृश्य होने को शक्ति से वह दमयन्ती के 'सत-मंजले' महल के मोतर जा पहुँचते हैं। वहाँ लड़की की अतुल लावण्य-लक्ष्मी देखो, तो नल की आँखें फटी की फटी रह गई। उधर एकाएक अपने कमरे में घुसे मदन-जैसे एक अतिसुन्दर, अजनवी युवा को सामने खड़ा देखा तो राजकुमारी भी अवाक रह गई, सुध-बुध भूल बैठी। पूछने पर आगन्तुक ने अपने को देवतात्रों का दूत बताया और दमयन्तो से अनुरोध किया कि वह नल का स्वप्न देखना छोड़कर इन्द्रादि चार देवताओं में किसी एक को वरे, अन्यथा कुपित हुए वे उस पर मुसोबत ढा देंगे। लड़की देख। तो पहले ही नल को अपना हृदय अपित कर चुको थी। जब उसने अपना आराध्य देव मत्यं ह। बना लिया, तो अमर्त्य देवों का वह क्या करतो। वह टस से मस नहीं हुई। किन्तु देवताओं द्वारा दी जाने वाली मुसीबत की बात सुनकर बह चौक पड़ो और तत्काल दूत के आगे बुरी तरह से रो पड़ी। उसकी आँखों में झड़ी लगी देख अन्त में दयावश नह अपनी असलियत राजकुमारी को बता देते हैं कि मैं हो नल हूँ। वापस आकर उन्होंने अपने दौत्य-कर्म की असफलता की सूचना देवताओं को दे दी। इससे पूर्व इन्द्र आदि ने अपनो दूती भी उपहारों के साथ दमयन्ती को अपने अनुकूल बनाने हेतु भेजी थी। वह भी विफल होकर लौट आई थीं। दूसरे दिन स्वयंवर आरम्म हुआ। अन्यान्य राजाओं के साथ खूब सजे-धजे चारों देवता नल का रूप धारण किये बैठे हुए थे / निज सौन्दर्य प्रमा द्वारा राजगों की आँखों को चौंधियाती हुई भूलोक / की उर्वशी दमयन्ती ने स्वयंवर स्थल में प्रवेश किया। विष्णु द्वारा परिचायिकाके रूप में मेजी, अपना रूप बदले सरस्वती उसके आगे-आगे थी। वह एक-एक करके राजाओं का परिचय देती जा रही थी और स्वयंवर-वधू एक-एक करके उन सबको छोड़ती जा रही थो। अन्त में जब एक-साथ पाँच नलों को देखती है तो दमयन्ती हैरान हो जाती है। सरस्वती देवताओं का छल जाने हुए है। वह चाहती तो उन 'छिपे रुश्तमों' की पोल खोल सकती थी, लेकिन मय के मारे देव-रूप में उनका असली परिचय न दे सकी। उनका परिचय देने में वह ऐती श्लेष-गर्मित माषा का प्रयोग करती है
SR No.032783
Book TitleNaishadhiya Charitam 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1997
Total Pages164
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy