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________________ [ 11 ] अर्थात् साथ-साथ लिखे गये होंगे, क्योंकि खण्डनखण्ड में भी नैषध काव्य का उल्लेख है / खण्डन में उल्लिखित ईश्वरा भिसन्धि को रचना कवि ने इन दोनों ग्रन्थों के बाद की होगी। जहाँ तक अनुपलब्ध ग्रन्थों के प्रतिपाद्य विषय का प्रश्न है, कुछ नहीं कहा जा सकता। इनके नामों से इनके विषयों का थोड़ा-बहुत आभास हो मिल सकता है। स्थैर्यविचारप्रकरण के सम्बन्ध में प्रसिद्ध टीकाकार नारायण ने व्याख्या में लिखा है-'स्थैर्यविचारणं क्षणभङ्गनिराकरणेन स्थिरत्वस्य विचारण-सूचको ग्रन्थः' अर्थात् इसमें कवि ने बौद्धों के क्षणभङ्गवाद का खण्डन करके पदार्थों के स्थिरत्व पर विचार किया होगा। विजयप्रशस्ति में अपने आश्रयदाता जयचन्द के पिता विजयचन्द का स्तव अथवा प्रशंसा होनी चाहिये / गौडोझेशकुलप्रशस्ति में गौड़ देश के भूपालों के वंश का परिचय और प्रशंसा होगी। अर्णव-वर्णन में कुछ विद्वानों का कहना है कि चहान वंश के राजा अर्णवराज का चरित है, किन्तु वर्णन का अर्थ चरित नहीं होता, अतः हमारे विचार से इसमें समुद्र का ही वर्णन होगा / छिन्द प्रशस्ति५ में नारायण के अनुसार छिन्द-नामक किसी राजा विशेष की प्रशंसा की होगी। कहीं छन्द प्रशस्ति पाठ मिलता है, जिसके अनुसार यह छन्दग्रन्थ होना चाहिये, लेकिन उन्दों के साथ प्रशस्ति शब्द की संगति ठीक नहीं बैठती। शिवशक्तिसिद्धि अथवा शिवभक्तिसिद्धि कोई स्तोत्र-ग्रन्थ अथवा तन्त्रग्रन्थ होगा। नवसाहसाचरित एक चम्पू. काव्य है, जिसमें नवसाहसाङ्क राजा का चरित-वर्णन है। कहीं कहीं नृपसाहसाचरित पाठ मी है / यह नवसाहसाङ्क अथवा नृपसाहसाङ्क कौन था-इसपर विद्वानों में मतभेद है। कोई गौड़ेन्द्र को कोई राजा मोजको और कोई जयचन्द को लेता है, लेकिन निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। नैषधीय चरित का कथानक-राजा वीरसेन के पुत्र नल निषध देश के प्रसिद्ध चन्द्रवंशी राजा थे-सभी विद्याओं में पारदृश्वा, रूप-सम्पदा में कामविजयी, शौर्यकर्म में अतुल और उदारता में पराकाष्ठा को पहुँचे / विदर्भदेश की परम सुन्दरी राजकुमारी दमयन्ती ने लोगों से जब उनके गुणों को चर्चा सुनी, तो अनदेखे ही उनपर अनुराग करने लगी। इधर नल भी तीनों लोकों में चर्चित उसके लोकातिशायी लावण्य और गुणों का समाचार पाकर मन में उसे चाहने लगे। 'पूर्णराग' में ही काम धीरे-धीरे दोनों में काम करने लगा। एक दिन राजा प्रमोद-वन में अपना विरहाकुल मन बहला रहे थे। सहसा सामने क्या देखते हैं कि तालाब के किनारे एक अदृष्टपूर्व स्वपिल हंस निद्रित अवस्था में स्थित है। कौतूहलवश दबे पाँव जाकर उसे एक दम पकर लेते हैं। बाद में उसकी करणा-भरी चोख-पुकार सुनी, तो दयावश छोड़ भी देते हैं। हंस ने मानुषी वाणी में राजा के प्रति कृतज्ञता प्रकट की और प्रत्युपकार के रूप में उन्हें दमयन्ती प्राप्त कराने में योग देने का वचन दे दिया और तमी वह विदर्भ को राजधानी कुण्डन नगरो को उड़ गया। राजकुमारी क्रीडा वन में 4. 9160 // 1. 4 / 123 / 5. 14222 / 2. 5.138 / 6. 18154 / 3. 7 / 110 / 7. 22 / 151 /
SR No.032783
Book TitleNaishadhiya Charitam 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1997
Total Pages164
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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