________________ अष्टमः सर्गः 179 टिप्पणी--क्षणम् =अत्यन्त सयोगमें द्वितीया / अन्वरज्यत् अनु+रज्ज+ लङ्+ तिप् / दमयन्ती हंस आदिके मुखसे सुने गये नलके रूपका सादृश्य देखकर ये पुरुष नल हैं ऐसा समझकर अनुरक्त हुई यह तात्पर्य है / उदास्त उद्+आस + लङ्+त / राजसैनिकोंसे सुरक्षित कन्याके अन्तःपुरमें नलका आना कैसे संभव होगा यह समझकर वे उदासीन हुईं। इसी तरह नल भी दमयन्तीको देखकर पहले हर्षसे बहुत चञ्चल हुए, पीछे अपने दौत्यके कारण भैमीकी प्राप्तिकी असंभावनास खिन्न हुए यह भाव है // 5 // कया चिदालोक्य नलं ललज्जे, कयाऽपि तद्धासि हवा ममज्ज। तं काऽपि मेने स्मरमेव कन्या, भेजे मनोभूवशभूयमन्या // 6 // अन्वयः कयाचित् नलम् आलोक्य ललज्जे। कयाऽपि तद्भासि हृदा ममज्जे / काऽपि कन्या तं स्मरम् एव मेने / अन्या मनोभूवशभूयं भेजे // 6 // : व्याख्या - अथ भैमीसखीनामपि शृङ्गारभावानाह–कयाचिदिति / कयाचित् = कन्यया, नल = नैषधम्, आलोक्य = दृष्ट्वा, ललज्जे = लज्जितम्। कयाऽपि = कन्यया, तद्भासि = नलसौन्दर्य, हृदा = अन्तःकरणेन, ममज्जे - निमग्नम् / तन्मयत्वं भावितमिति भावः / काऽपि = काचित्, कन्या = कुमारी, तं = नलं, स्मरम् एव = कामदेवम् एव, मेने = ज्ञातवती, इति विस्मयोक्तिः / अन्या = अपरा कन्या, मनोभूवशभूयं = कामवशत्वं,भेजे = श्रितवती, एतेन औत्सुक्यं गम्यते // 6 // अनुवाद:-कोई कन्या नलको देखकर लज्जित हुई। कोई कन्या नलके सौन्दर्य में अन्तःकरणसे ड्व गई / किसी कन्याने उन्हें कामदेव ही जाना और कोई कुमारी कामदेवके वशीभूत हो गई // 6 // टिप्पणी-ललज्जे = लस्ज+लिट् ( भावमें )+त ( एश् ) / तद्भासि %D तस्य भाः, तस्याम् (10 त० ) / हृदा = करगर्ने तृतीया / ममग्जे - मस्ज+ लिट् / भावमें + त ( एश् ) / मेने = मन+लिट् +त ( एश् ) / मनोभूवशभूयं = वशस्य भावो वशभूयं, वश+भू + क्यप् + सु / "भुवो भावे" इससे क्यप् / मनोभुवो वशभूयं, तत् ( 10 त०)। भेजे = भज+लिट् +त ( एश् ) // 6 // कस्त्वं कुतो वेति न जानु शेकुस्तं प्रष्टुमध्यप्रतिभाऽसिभारात् / . उत्तस्थुरभ्युस्थितिवाञ्छयेव निजाऽभनान्नकरसाः कृशाङ्गवः // 7 //