SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 758
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तमः सर्गः यानेन तन्व्या जितदन्तिनाथो पदाऽजराजो परिशुद्धपाणी। जाने न शुभूषयितुं स्वमिच्छू नतेन मूर्ना कतरस्य राज्ञः // 101 // अन्वयः यानेन जितदन्तिनाथौ परिशुद्धपाष्र्णी तन्व्याः पदाऽब्जराजो कतरस्य राज्ञः नतेन मूर्ना स्वं शुश्रूषयितुम् इच्छु न जाने // 101 // ___ व्याख्या -- यानेन = गत्या दण्डयात्रया च, जितदन्तिनाथो = पराजितगजेन्द्रौ, पराजितगजपती च, परिशुद्धपाणी = निर्दोषगुल्फपश्चाद्भागो, वशीकृतपाणिग्राही, तन्व्याः = सुन्दर्या दमयन्त्याः, पदाऽब्जराजो चरणकमलराजी, कतरस्य = कस्य, राज्ञः = पत्युः शत्रोश्च, नतेन = नम्रण, मूर्ना = शिरसा, पतिपक्षे-मानशान्तये, शत्रुपक्षे-क्रोधशान्तय इति भावः / स्वम् = आत्मानं सेव्यं, शुश्रूषयितुं = सेवयितुम्, इच्छू = अभिलाषुको, न जाने = न अवगच्छामि / / 101 // अनुवादः जैसे विजय यात्रासे हाथियोंके स्वामी राजाको जीतनेवाले, पाणिग्राह ( पीछेसे हमला करनेवाले शत्रु ) को वशमें करनेवाले राजा अपने अधीन राजाके नम्र शिरसे अपनी शुश्रुषा करानेके लिए अभिलाष करते हैं वैसे ही अपनी गतिसे हाथीको जीतनेवाले और जिनके टखनोंके पृष्ठभाग निर्दोष हैं दमयन्तीके ऐसे चरण-कमलरूप राजा किस पतिके नम्र शिरसे अपनी शुश्रूषा करानेके लिए अभिलाष करते हैं यह मैं नहीं जानता हूँ॥ 10 // टिप्पणी जितदन्तिनाथोः = दन्तिनां नाथः दन्तिनाथः (10 त०), श्रेष्ठ हाथी अथवा हाथियोंके स्वामी / जितो दन्तिनाथो याभ्यां तौ ( बहु० ) / परिशुद्धपाणी = परिशुद्धः पाणिः ययोस्तो ( वहु० ) / पदाऽब्जराजौ = पदे अब्जे इव ( उपमित० ) / पदाब्जे एव राजानी ( रूपक० ) / शुश्रूषयितुं = श्र.+सन् + णिच्+तुमुन् / दमयन्ती हाथीके समान गमन करनेवाली है यह भाव है / इस पद्यमें "पदाऽब्जराजौ” यहाँपर रूपकुका श्लेषके साथ अङ्गाङ्गिभावसे सङ्कर अलङ्कार है // 10 // कर्णाऽक्षिदन्तच्छदबाहुपाणिपदादिन: स्थाऽखिलतुल्यजेतुः / उद्वेगभागद्वयताऽभिमानादिहेव वेधा व्यधित द्वितीयम // 102 // अन्वयः- स्वाऽखिलतुल्यजेतुः कर्णाऽक्षिदन्तच्छदबाहुपाणिपदादिनः अद्वयता:भिमानात् उद्वेगभाक् वेधा इह एव द्वितीयं व्यधित // 102 // व्याख्या - स्वाऽखिलतुल्यजेतुः = निजसमस्तसमानवस्तुविजयिनः, कर्गाऽभिदन्तच्छदबाहुपाणिपदादिनः = श्रोत्रनेत्रौष्ठभुजचरणादिनः, अवयव जातस्येति
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy