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________________ प्रथमः सर्गः इस एक क्रियाके साथ नल और स्मर इन दोनों प्रस्तुतोंकी कर्तृतासे सम्बन्ध होनेसे तुल्ययोगिता अलङ्कार है और "स्वात्मशरासनाश्रयः" इस पदमें स्व और आत्मन् शब्दके प्रयोगसे पहले पुनरुक्ति प्रतीत होती है, पीछेसे सु-( शोभन ) प्रात्मशरासन ऐसे अर्थकी प्रतीति होनेसे पुनरुक्तवदा भास अलंकार है, उसका लक्षण है आपाततो यदर्थस्य पौनरुक्त्याऽवभासनम् / पुनरुक्तवदाभासः स भिन्नाकारशब्दगः // 10.2 ( सा० द०)। इस प्रकार दो अलंकारोंकी संसृष्टि है / / 44 // अमुष्य धोरस्य जयाय साहसी तवा खलु ज्या विशिक्षः सनाथयन् / निमज्जयामास यशांसि संशये स्मरस्त्रिलोकोविजयाजितान्यपि // 45 // अन्वयः--साहसी स्मरः धीरस्थ अमुष्य जयाय तदा ज्यां विशिखः सनाथपन् त्रिलोकीविजयाजितानि अपि यशांसि संशये निमज्जयामास खलु // 45 / / व्याल्या-साहसी साहसकरः, स्मरः = कामदेवः, धीरस्य = धैर्ययुक्तस्य, अमुष्य = नलस्य, जयाय = विजयाय, तदा = तस्मिन् समये, ज्यां = मौर्वी, विशिखः = बाणः, सनाथयन् = सनाथां कुर्वन्, संयोजयन्नित्यर्थः / त्रिलोकीविबयाजितानि अपि = त्रिभुवनजयोपाजितानि अपि, यशांसि = कीर्तीः, संशये = सन्देहे; निमज्जयामास = स्थापयामास, खलु = निश्चयेन, त्रिभुवनविजेताऽपि कामः नलविजयार्थ प्रवर्तमानः सन् "सोऽयं कामः नलविजये समर्थो भवेन्नवेति संशयपात्रं बभूवे" ति भावः // 45 // / ... अनुवाद:--साहसी कामदेवने धैर्यशाली नलको जीतनेके लिए उस समय प्रत्यञ्चामें बाणोंको चढ़ाकर तीन लोकोंको जीतकर उपार्जित अपने यशको संशयमें डाल दिया / / 45 // . . टिप्पणी --साहसी साहसम् अस्यास्तीति. साहस शब्दसे "अत इनिठनो" इससे इनि प्रत्यय / “न संशयमनारुह्य नरो भद्राणि पश्यति" इस न्यायसेविलम्ब नहीं करता हुआ यह तात्पर्य है / जयाय = क्रियाऽर्थोपपदस्य च कर्मणि स्थानिनः" इससे चतुर्थी / सनाथयन् = नाथैः सहिता सनाथा ( तुल्ययोग बहु० ) / सनाथां कुर्वन्, "तत्करोति तदाचष्टे' इस सूत्रसे णिच् प्रत्यय होकर लटके स्थानमें शतृ आदेश / त्रिलोकीविज याजितानि = त्रयाणां लोकानां समाहारः त्रिलोकी, "तद्धिताऽर्थोत्तरपदसमाहारे च" इससे समास, ''संख्यापूर्वो द्विगुः इससे उसकी द्विगुसंज्ञा और "अकाराऽन्तोत्तरपदो द्विगु: स्त्रियामिष्टः" इससे स्त्रीलिङ्ग 4 नं० प्र०
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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