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________________ सप्तमः सर्गः कामदेवके धनु और चन्द्रकलङ्कके दूसरे अवतार हैं, इस प्रकार यहाँ उत्प्रेक्षा अलङ्कार है // 26 // इपुत्रयेणव जगत्त्रयस्य विनिर्जयात्पुष्पमया शुगेन / शेषा हिवाणी सफलीकृतेयं प्रियादृगम्भोजपवेऽभिषिच्य // 27 // अन्वयः-पुष्पमयाऽशुगेन इषुत्रयेण एव जगत्त्रयस्य विनिर्जयात् शेषा इयं द्विवाणी प्रियादृगम्भोजपदे अभिषिच्य सफलीकृता / / 27 // व्याख्या-पुष्पमयाऽशुगेन = कुसुममयबाणेन, कामदेवेनेति भावः / इषुत्रयेण एव = पुष्परूपबाणत्रितयमात्रेण, जगत्त्रयस्य = लोकत्रितयस्य, विनिर्जयात् = पराजयात्, शेषा = अवशिष्टा, इयं = पुरस्थिता, द्विबाणी = बाणद्वयं, प्रियादृगम्भोजपदे = दमयन्तीनयनकमलस्थाने, अभिषिच्य = उक्षित्वां, आरोप्येति भावः / सफलीकृता = सार्थकीकृता // 27 // __अनुवादः-पुष्परूप बाणोंवाले कामदेवने पुष्परूप तीन बाणोंसे ही तीनों लोकोंको जीतनेसे अवशिष्ट इन दो बाणोंको दमयन्तीके नेत्रकमलोंके स्थानमें रखकर सफल कर दिया है / / 27 // टिप्पणी-पुष्पमयाऽशुगेन = पुष्पाणि एव पुष्पमयाः, पुष्प + मयट् + जस् / पुष्पमयाः आशुगाः यस्य, तेन ( बहु 0 ) / जगत्त्रयस्य = जगतां त्रयं, तस्य ( 10 त० ) / विनिर्जयात् = हेतुमें पञ्चमी / द्विबाणी = द्वयोः बाणयोः समाहारः ( द्विगुः ) / प्रियादृगम्भोजपदे = दृशौ एव अम्भोजे ( रूपक० ) / प्रियायाः दृगम्भोजे (ष० त० ), तयोः पदं, तस्मिन् ( 10 त०) / अभिषिच्यअभि+ षिच्+क्त्वा ( ल्यप् ) / सफलीकृता = फलेन सहिता सफला ( तुल्ययोगबहु० ) / असफला सफला यथा संपद्यते तथा कृता, सफल+च्चि++ क्तः+ टा+सुः / दमयन्तीके नेत्र कामदेवके पुष्परूप बाणोंमें परिणत हुए हैं, नही तो ये कैसे संपूर्ण युवकोंको क्षुब्ध करते, यह अभिप्राय है / इस पद्यमें उत्प्रेक्षा अलङ्कार है / / 27 // सेयं मदुः कोसुमचापयष्टिः स्मरस्य मुष्टिमहणाऽहंमध्या। तनोति नः श्रीमवपाङ्गमुक्ता मोहाय या दृष्टिशरोधवृष्टिम् // 28 // अन्वयः-मृदुः मुष्टिग्रहणार्हमध्या सा इयं स्मरस्य कौसुमचापयष्टिः / या नः मोहाय श्रीमदपाङ्गमुक्तां दृष्टिशरोघवृष्टि तनोति // 28 // __व्याख्या-मृदुः = कोमला, मुष्टिग्रहणाऽर्हमध्या - हस्तग्राह्याऽवलग्ना, धनुर्यष्टिपक्षे-हस्तग्राह्यलस्तका, सा = प्रसिद्धा, इयम् = एषा दमयन्ती,
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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