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________________ 100 नैषधीयचरितं महाकाव्यम् सापल्यम ( नञ्० ) / असापल्येन सुखी (तृ० त०) / वसति = वस+ लट् + तिप् // 17 // औमि प्रियाऽङ्गघृणयव सूक्षा न वारिदुर्गात्तु वराटकस्य / न कण्टकरावरणाच्च कान्तिधूलीभृता काञ्चनकेतकस्य // 18 // अन्वयः-प्रियाऽङ्गः वराटकस्य रूक्षा कान्ति: घृणया एव औज्झि, वारिदुर्गात्तु न ( औज्झि ) / काञ्चनकेतकस्य धूलीभृता कान्तिः औज्झि, कण्टकैः आवरणाच्च न (औज्झि) // 18 // ____ व्याख्या-प्रियाङ्गः = दमयन्तीशरीराऽवयवैः, वराटकस्य = बीजकोशस्य, कमलकणिकाया इति भावः / रूक्षा = परुषा, कान्तिः = शोभा, घृणया एव = जुगुप्सया एव हेतुना, औज्झि = उज्झिता, त्यक्तेति भावः, वारिदुर्गात्तु न = जलदुर्गस्थत्वात्तु न, औज्झीति सम्बन्धः / एवं च काञ्चनकेतकस्य = सुवर्णकेतकीपुष्पस्य, धूलीभृता = रजःपूरिता, कान्तिः = शोभा, औज्झि =त्यक्ता, कण्टकैः = सूच्यग्रसदृशाऽवयवैः हेतुभिः, आवरणाच्च = परिवेष्टनाच्च हेतोः, न औज्झि - न उज्झिता। दमयन्तीशरीरकान्तिः वराटकस्य काञ्चनकेतकस्य च कान्तेः श्रेयसीति भावः // 18 // अनुवादः-दमयन्तीके अङ्गोंने कमलगट्टे की रूखी कान्तिको घृणासे ही परित्याग किया, कमलगट्टे के जलरूप दुर्ग ( किले ) में रहनेके कारणसे नहीं परित्याग किया, इसी तरह दमयन्तीके अङ्गोंने सुवर्णकेतकी-पुष्पकी धूलि(पराग ) वाली कान्तिको परित्याग किया, काँटोंसे और आवरणसे परित्याग नहीं किया है // 18 // टिप्पणो- प्रियाऽङ्गः प्रियाया अङ्गानि, तै: (10 त० ) / वराटकस्य = "बीजकोशो वराटकः” इत्यमरः / औज्झि = उज्झ+ लुङ् ( कर्ममें ) + त। वारिदुर्गात् = वारि एव दुर्गः, तस्मात् (रूपक०)। हेतुमें पञ्चमी / काञ्चनकेत कस्य == काञ्चनं च तत् केतकं, तस्य (क० धा०) / धूलीभृता = धूलीभिः भृता (त० त०)। रूक्षत्व और कण्टकत्व आदि. दोषोंके कारण कमलगट्टे की और धूलियुक्त होनेसे सुवर्णकेतकी-पुष्पकी कान्ति दमयन्तीके शरीरकी कान्तिको नहीं पा सकती, यह भाव है। इस पद्यमें उपमानभूत वराटक और सुवर्णकेतकसे उपमेयभूत दमयन्तीके अङ्गोंका आधिक्य होनेस व्यतिरेक अलङ्कार है // 18 // प्रत्यङ्गमस्यामभिकेन रक्षा कर्तु मघोनेव निजाऽस्त्रमस्ति। वजं च भूषामणिमूतिधारि नियोजितं तद्युति का क च // 11 //
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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