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________________ नैषधीयचरितं महाकाव्यम् . आदिका अवलम्बन कर विचरण करती है, वैसे ही नलकी दृष्टि भी दमयन्तीके नितम्बको बहुत समयतक देखकर उनके ऊरुओंको देखने लगी, यह तात्पर्य है। उपजाति छन्द है // 7 // वासः परं नेत्रमहं न नेत्रं किमु त्वमालिङ्गय तन्मयापि। उरोनितम्बोर कुरु प्रसादमितीव सा तत्पदयो पपात // 8 // अन्वयः-( हे दमयन्ति ! ) वासः परं नेत्रम्, अहं नेत्रं न किमु ? ( अस्मि एव), तत् मया अपि उरोनितम्बोरु आलिङ्गय / प्रसादं कुरु इति इव सा तत्पदयोः पपात / / 8 // ___ व्याख्या-(हे दमयन्ति ! ) वासः परं = वस्त्रम् एव, नेत्रम् = आच्छादनम्, अहं = नेत्रं, नेत्रं न किमु = नेत्रं न अस्मि किम्, अस्म्येवेति भावः / तत्तस्मात् कारणात्, नेत्रत्वाऽविशेषादिति भावः / मया अपि = नेत्रवाचकेन नयनेन अपि, उरोनितम्बोरु - वक्षःस्थलं, कटिपश्चाद्भागम् सक्थिनी च, आलिङ्गय - आश्लेषय, प्रसादम् = अनुग्रहम्, आलिङ्गनरूपमिति भावः / कुरु - विधेहि, इति इव = इति बुद्ध या इव, सा = नलदृष्टिः, तत्पदयोः = दमयन्तीचरणयोः, पपात = पतिता, दमयन्त्याः पदे अपि ददर्शति भावः / / 8 / / ___ अनुवादः-( हे दमयन्ति ) वस्त्र ही नेत्र है, मैं ( दृष्टि ) नेत्र नहीं हूँ क्या ? ( है ही ) / इस कारणसे मुझ ( नेत्रदृष्टि ) से भी अपने वक्षःस्थल, नितम्ब और ऊरुओंको आलिङ्गन कराओ, अनुग्रह करो, मानों ऐसी बुद्धि करके नेत्र दमयन्तीके चरणोंमें गिर पड़े // 8 // टिप्पणीनेत्रं = "नेत्रं पथि गुणे वस्त्रे तरुमूले विलोचने / " इति विश्वः / यहाँपर 'नेत्र' पदका वस्त्र और नयन दो अर्थ हैं / उरोनितम्बोरु = उरश्च नितम्बश्च ऊरू च, तत्, प्राणीके अङ्ग होनेसे "द्वन्द्वश्च प्राणितूर्यसेनाऽङ्गानाम्" इससे समाहारमें द्वन्द्व / तत्पदयोः तस्याः पदे, तयोः ( ष० त० ) / नलके नेत्रोंने दमयन्तीके वक्षःस्थल, नितम्ब और ऊरुओंको देखकर चरणोंको भी देखा, यह तात्पर्य है / इस पद्यमें उत्प्रेक्षा अलङ्कार है // 8 // दृशोर्यथाकाममथोपहृत्य स प्रेयसीमालिकुलं च तस्याः। इति .प्रमोदाद्भुतसंभृतेन महीमहेन्द्रो मनसा जगाद // 9 // अन्वयः-अथ महीमहेन्द्रो दृशोः प्रेयसी तस्या आलिकुलं च यथाकामम् उपहृत्य प्रमोदाऽद्भुतसंभृतेन मनसा इदं जगाद // 9 // व्याख्या--अथ = अनन्तरं, महीमहेन्द्रः = भूमीन्द्रो नल:, दृशोः =
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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