________________ "44 नैषधीयचरितं महाकाव्यम् अनुवाद:- नलने जिस दमयन्तीकी सभामें किसी स्त्रीके हाथपर बैठी हुई मैनाके मुखसे "हे दमयन्ति ! अपने मनमें स्थित इन नलको देखिए, वियोगके दुःखको छोड़िए", सखियोंके ऐसे आश्वासनवाक्योंको सुनकर इन लोगोंने मुझे देख लिया है क्या ? ऐसी आशङ्का की // 60 // - टिप्पणी-नारीकरवर्तिशारीमुखात् = नार्याः करः (10 त०), नारीकरे वर्तते तच्छीला इति नारीकरवर्तिनी ( नारीकर + वृत् + णिनिः + डीप ( उपपद०) सु / सा चाऽसौ शारी .( क० धा०), "कृदिकारादक्तिनः" इससे डीप होकर स्त्रीलिङ्ग में "शारी" ऐसा रूप होता है। "शारिर्नाक्षोपकरणे, स्त्रियाँ शकुनिकान्तरे।" इति मेदिनी। नारीकरवर्तिशार्या मुखं, तस्मात् (10 त० ) / त्यज-त्यज+लोट् + सिप् / आलिकुलप्रबोधान् प्रबोध्यते एभिरिति प्रबोधाः, प्र+ बुध् +घञ् ( करण अर्थ में ) / अलीन कुलम् (10 त० ), तस्य प्रबोधाः, तान् (10 त० ) / मैनाके वाक्यमें नारीकों वाक्यका भ्रम होनेसे इन स्त्रियोंने मुझे देख लिया नलने ऐसी आशङ्का की यह भाव है / अत एव इस पद्यमें भ्रान्तिमान् अलङ्कार व्यङ्गय है, इस प्रकार वस्तुसे अलङ्कारकी ध्वनि है // 6 // यत्रकयाऽलीकनलोकृतालीकण्ठे मृषाभीमभवीभवन्त्या। तदृक्पथे दोहदिकोपनीता शालीनमाषायि मधूकमाला / / 61 // अन्वयः—यत्र तदृक्पथे मृषाभीमभवीभवन्त्या एकया अलीकनलीकृताऽऽलीकण्ठे दौहदिकोपनीता मधूकमाला शालीनम् आधायि // 61 // व्याख्या—यत्र = दमयन्तीसभायां, तदृक्पथे = नलदृष्टिमार्गे, मृषाभीमभवीभवन्त्या = आरोपितभैमीभवन्त्या, एकया = सख्या, अलीकनलीकृताऽऽलीकण्ठे = मृषानैषधीकृतसखीगले, दौहदिकोपनीता = धात्रीसमर्पिता, मधूकमाला = मधुद्रुमपुष्पस्रक्, शालीनम् = अधृष्टं, लज्जामन्थर यथातथेति भावः / अधायि-आहिता // 61 // अनुवादः-जिस दमयन्तीकी सभामें नलके दृष्टिमार्गमें दमयन्तीका नकल करनेवाली एक स्त्रीने नलका नकल करनेवाली सखीके गलेमें धात्री ( धाय ) से दी गयी महुएकी मालाको नम्रताके साथ डाल दिया // 61 // टिप्पणी-तदृक्पथे = दृशोः पन्था दृक्पथः (10 त० ) / तस्य दृक्पथः, तस्मिन् (ष० त० ) / मृषाभीमभवीभवन्त्या = भीमात् भवतीति भीमभवा (भीम+भू+अच् + टाप् ) / मृषा भीमभवा ( सुप्सुपा० ) / अमृषा भीम