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________________ पचमः सर्गः 163 उदयन्ती दया यस्मिस्तत् ( बहु० ), उदयद्दयं चित्तं यस्य सः (बहु०) / अर्थिबन्धुः=अर्थी एव बन्धुः (रूपक०) / निनीषति = नेतुम् इच्छति, नी+ सन् + लट् + तिप् / अन्य बन्धु धनीका सर्वस्व स्वयं ही लेते हैं, धनको धनीके पास नहीं पहुंचाते हैं, इस कारणसे आपत्तिका बन्धु याचक, संग्रहके योग्य है, यह तात्पर्य है / / 91 // दानपात्रमधमणमिहकग्राहि, कोटिगुणितं विवि वायि। . .. सापुरेति सुकृतयदि कर्तुं पारलौकिक कुसीदमसीवत् // 12 // अन्वयः-साधुः इह एकग्राहि, दिवि कोटिगुणितं दायि दानपात्रम् ( एव ) अधमर्ण सुकृतः एति यदि (तदा ) अंसीदत् पारलौकिकं कुसीदं कर्तुम् (अलम् ) / व्याख्या-साधुः सज्जनो 'वाऽषिकश्च' इहअस्मिन् लोके, एकनाहि =एकग्राहक, दिवि=स्वर्गे, परलोक इत्यर्थः, कोटिगुणितं= कोटिशः आवृत्त, दायि=दातृ, एतादृशं दानपात्रम् वितरणभाजनं, याचकमित्यर्थः, तदेव अधमर्ण=धनग्राहि, सुकृतः पुण्यैः, एति यदि प्राप्नोति चेद, तदा, असीदत् = अविनश्यत्, पारलौकिकं लोकान्तरभवं, कुसीदं वृदिजीवनं, कर्तुविधातुम्, बलम् इति शेषः, पर्याप्तम् इति भावः / ... _ अनुवाद-सज्जन और वृद्धिजीवी ( सूदखोर ) इस लोकमें एक लेता है और परलोकमें करोड़ गुना देनेवाले दानपात्ररूप ऋणी( कर्जदार )को पुण्योंसे प्राप्त करता है तो नष्ट नहीं होनेवाले परलोकमें मिलनेवाले वृद्धिजीवनको करनेके लिए पर्याप्त है। टिप्पणी-साधुः="साधुस्त्रिषु हिते रम्ये, वार्षुषो सज्जने पुमान् / " इति बजयन्ती / एकग्राहि = एकं गृह्णातीति, एक+ ग्रह+णिनि ( उपपद०)+ अम् / कोटिगुणितं कोटया गुणितं, तत् (40 त०)। दायि=ददातीति, तत्, दा धातुसे "आवश्यकाधमय॑योणिनिः" इस सूत्रसे आधमय में णिनि प्रत्यय / इस पदके योगमें "कोटिगुणित" शब्दसे "अकेनोभविष्यदाधमण्यंयोः" इस सूत्रसे षष्ठीके निषेधसे द्वितीया। "वस्त्रधान्यहिरण्यानां चतुस्त्रिद्विगुणा मता।" इस शास्त्रवचनके अनुसार वस्त्रमें चौगुनी, धान्यमें तिगुनी और सोनेमें दुगुनी वृद्धि( मुनाफा )का परिमाण लोकमें कहा गया है, परन्तु यह ( दानपात्र ) तो अपरिमित वृद्धिको देनेवाला है, यह तात्पर्य है / दानपात्र=दानस्य पात्र, -इद (प० त०) / अधमर्णम् =अधमम् ऋणं यस्य सः, तत् (बह०) / "दान
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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