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________________ तृतीयः सर्गः . 101 वशः, तस्मात् (100) / विकसद्विलासे विकसन् विलासो ययोस्ते (बहु० ) / * मनसिजस्य-मनसि जायते इति मनसिजः, तस्य, जन धातुसे "सप्तम्यां जनेर्ड:". इस सूत्रसे ड प्रत्यय, "हलदन्तात्सप्तम्याः संज्ञायाम्" इससे अलुक् समास / "शम्बरारिमनसिजः कुसुमेषुरनन्यजः" इत्यमरः / स्रष्टुं सृज+तुमुन् / घणुककृत द्वघणुकं करोतीति, द्वषणुक++ क्विप् ( उपपद०)। पर. माणुयुग्मं = परमाण्वोर्युग्मम् (10 त०) / विभातां=वि+मा+लोट् +तस (ताम्)। न्यायशास्त्रके सिद्धान्तके अनुसार जैसे सक्रिय दो परमाणुओंसे द्वघणुक उत्पन्न होता है, उसी तरह आप दोनोंके मन भी मिलकर विलासपूर्ण होकर कामदेवके शरीरको उत्पन्न करें, यह अभिप्राय है / इस पद्यमें उत्प्रेक्षा अलङ्कार और वसन्ततिलका वृत्त है // 125 // कामः कौसुमचापदुनयममुं जेतुं नृपं त्वां धनु बल्लीमवणवंशजामधिगुणामासाद्य माधत्यसो / ग्रीवाऽलङ्कृतिपट्टसूत्रलतया पृष्ठे कियल्लम्बया भ्राजिष्णु कषरेखयेव निवसत्सिन्दूरसौन्दर्यया // 126 // अन्वयः-असो कामः कोसुमचापदुर्जयम् अमुं नृपं जेतुम् अत्रणवंशजाम् अधिगुणां निवसत्सिन्दूरसौन्दर्यया कषरेखया इव पृष्ठे कियल्लम्बया ग्रीवाऽलङ् कृतिपट्टसूत्रलतया भ्राजिष्णुं त्वाम् एव धनुर्वल्लीम् आसाद्य माद्यति // 126 / / ___व्याख्या-(हे भैमि ! ) असौ=अयं, नलजिगीषुरिति भावः / कामः= मदनः, कोसुमचापदुर्जयं=पुष्पधनुरजय्यम्, अमुम् =इम, नृपं=राजानं नलं, जेत वशीकर्तुम्, अव्रणवंशजां= सत्कुलप्रसूता, दृढवेणुजन्यां च, अधिगुणाम् - अधिकसौन्दर्यादिगुणाम्, अधिज्यां च, निवसत्सिन्दूरसौन्दर्य या अनुवर्तमानसिन्दूरसमशोभायुक्तया, कषरेखया कृतघर्षणरेखया इव, पृष्ठे =पीवापश्चादागे, कियल्लम्बया=कियद्दीर्घया, ग्रीवाऽलङ्कृतिपट्टसूत्रलतया शिरोधिभूषण. कौशेयतन्तुवल्ल्या, भ्राजिष्णुं शोभमानां, त्वाम् एव भवतीम् एव, धनुबल्कीचापलताम्, आसाद्य प्राप्य, माद्यति हृष्यति // 126 // ___ अनुवाद-(हे राजकुमारी ! ) वह कामदेव, फूलोंके धनुषसे नहीं जीते जानेवाले राजा नलको जीतनेके लिए उत्तम कुलमें उत्पन्न, सौन्दर्य आदि अधिक गुणोंवाली, सिन्दूरके सौन्दर्यसे युक्त घर्षणकी रेखाके समान, पीठपर कुछ लटकनेवाले ग्रीवाके भूषण रेशमी वस्त्रकी सूत्रलतासे चमकनेवाली आपको ही धनुष् के रूपमें प्राप्त कर प्रसन्न हो रहा है / / 126 //
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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