________________ 16 नैषधीयचरितं महाकाव्यम् भूपालमृगीदृशां = शत्रुभुपतिसुन्दरीणां, दृशः = नेत्राणि, न तत्यजुः = त्यक्तवत्यः नूनम् = इव // 11 // अनुवादः-महाराज नलने समस्त भूतलसे अतिवृष्टि आदि ईतियोंको हटा दिया. तब निवारित अतिवृष्टियां दसरा आश्रयस्थान न होनेसे नलके शत्र राजाओंकी पत्नियोंके नेत्रोंको नहीं छोड़ती थीं ऐसा मालूम होता है // 11 // टिप्पणी--महीतले = मह्यास्तलं, तस्मिन् ( 10 त०)। निरीतिभावं = ईतेः भावः (ष० त० ) / राष्ट्र में दुर्भिक्ष आदि उपद्रवोंकी सूचना करनेवाली ईतियां छः प्रकारकी होती हैं। जैसे कि "अतिवृष्टिरनावष्टिर्मूषकाः शलभाः शुकाः / अत्यासन्नाश्च राजानः षडेता ईतयः स्मृताः // " अर्थात् अतिवृष्टि, अनावृष्टि (वृष्टिका न होना), चूहे, शलभ (टिड्डी), तोते, ज्यादा निकटवर्ती राजा इस प्रकार ईतिके छः भेद होते हैं निर्गता ईतयो यस्मिस्तत् (बहु०)। निरीतिनो भावः, तम् (ष० त०)। गमिते = गम् + पिच् + क्तः / ङि / निवारिताः% नि+वृ+णिच् + क्तः + टाप्+जस् / अनन्य. संश्रयाः। अन्यस्य संश्रयः (10 त०)। अविद्यमानः अन्यसंश्रयः यासां ताः ( नब्बहु० ) अनन्यसंश्रयः = "नको स्त्यर्थानां वाच्यो वा चोत्तरपदलोपः" इससे ( नरबह० ) प्रतीपभपालमृगीदृशां = प्रतिकला आपो येषु ते प्रतीपाः, प्रति-उपसर्गपूर्वक "अप्" शब्दसे "द्वयन्तरुपसर्गेभ्योऽप ईत्" इस सूत्रसे समासान्त अप्रत्यय और 'अप' के अकारका ईत्व हुआ है ( बहु० ) / भुवं पालयन्तीति भूपालाः, भू-उपपदपूर्वक "पाल रक्षणे" धातुसे “कर्मण्यम्" इस सूत्रसे अण् प्रत्यय "उपपदमति” इस सूत्रसे उपपदसमास / प्रतीपाश्च ते भूपाला: (क० धा० ) / मृग्या इव दृशो यासां ताः मृगीदृशः' सप्तमी विशेषणे बहुव्रीहो" इस सूत्रसे ज्ञापित व्यधिकरण बहुव्रीहि / प्रतीपभूपालानां मृगीदृशः, तासाम् (10 त० ) / तत्यजुः = "ज्यज हानो" धातुसे लिट् + झि ( उस् ) / नूनम् = यह उत्प्रेक्षावाचक शब्द है, जैसे कि कहा गया है - "मन्ये शके ध्रुवं प्रायो नूनमित्येवमादयः / .. . उत्प्रेक्षावाचकाः शब्दा इवशब्दोऽपि तादृशः / / शत्रु राजाओंकी सुन्दरियोंके अश्रुपातके वर्णनसे नलसे उनके शत्रु राजाओंकी पराजय गम्य होता है अतः पर्यायोक्त अलङ्कार है, जैसे कि काव्यप्रकाशमें उसका लक्षण है-"पर्यायोक्तं विना वाच्यवाचकत्वेन यद्वचः।" 10-115 / '