________________ तृतीयः सर्गः उपार्जित वा आपसे रचित अपने नेत्रोंकी अरुणता ( लाली.) और प्रेमको धारण करते हैं / 103 / / टिप्पणी-अब हंस नलकी कामसे उत्पन्न दश अवस्थाओंका वर्णन करता है / दश अवस्थाएँ ये हैं "नयनप्रीतिः प्रथम, चित्ताऽऽसङ्गस्ततोऽथ सङ्कल्पः / निद्राच्छेदस्तनुता, विषय निवृत्तिस्त्रपानाशः / / उन्मादो मूर्छा मृतिरित्येताः स्मरदशा दर्शव स्युः / ". अर्थात् नेत्रप्रीति, चित्तकी आसक्ति, संकल्प, निद्राका नाश, कृशता, विषयोंकी निवृत्ति, लज्जाका नाश, उन्माद (पागलपन), मूर्छा और मरण-ये दश कामकृत अवस्थाएं हैं। पहले दो श्लोकोंसे नेत्रप्रीतिका वर्णन करता है। भित्तिविभूषणं-भित्तेः विभूषणं, तत् (10 त० ) / आदरनिनिमेषं निर्गता निमेषाः ( निमेषव्यापाराः ) यत्र, ( बहु० ) / आदरेण निनिमेषम् ( तृ० त०, क्रि० वि० ) / पिबन्=पा+लट् ( शतृ )+सु। चक्षुर्जलैःचक्षुषोर्जलानि, तैः (10 त० ) / आत्मचक्षुरागम् =आत्मनः चक्षुः ( ष० त० ), तस्य रागः, तम् (10 त० ) / "राग" पदके यहाँपर दो अर्थ हैं-एक अरुणता (लाली), दूसरा अनुराग ( प्रेम ) / धत्ते=धा+लट् +त / इस पद्यमें राजाके नेत्रका राग निनिमेष दृष्टिसे देखनेसे हुआ है अथवा आपसे रचित है, ऐसा सन्देह होनेसे "सन्देह" अलङ्कार है / / 103 / / पातुशाऽऽलेल्यमयीं नृपस्य त्वामावरावस्तनिमीलयाऽस्ति / ममेदमित्यणि नेत्रवत्तेः प्रीतेनिमेषच्छिवया विवादः // 10 // अन्वयः-(हे राजकुमारि ! ) अस्तनिमीलया दृशा आलेख्यमयीं त्वाम् भादरात् पातुः नृपस्य नेत्रवृत्तेः प्रीतेः निमेषच्छिदया अधुणि विवादः अस्ति / ग्याल्या-(हे राजकुमारि ! ) अस्तनिमीलया-निमेषरहितया, दशानेत्रेण, आलेख्यमयीं=चित्रस्थितां, त्वां भवतीम्, आदरात-प्रणयात, पातुः= पानकर्तुः, द्रष्टुरिति भावः / तादृशस्य नृपस्य =राशः नलस्य, नेत्रवृत्तेः= नयनवतिन्याः, प्रीते:=प्रणयस्य, नेत्रप्रणयस्य, निमेषच्छिदया निमेषच्छेदेन सह, अश्रुणि नेत्रजले विषये, विवाद: - कलहः, अस्ति=वर्तते / / 104 // ___ अनुवाद-(हे राजकुमारी ! ) पलक न मारनेवाले नेत्रसे चित्रमें स्थित आपको आदरसे देखनेवाले राजाके नेत्रोंमें रहनेवाली प्रीतिका नेत्रोंमें रहनेवाले निमेषविच्छेदके साथ आंसूके विषय में कलह होता है // 104 / /